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महाराजा ने पूछा-'पुत्र ! किस दुष्ट ने तेरी यह दशा की ?'
'पिताश्री ! इसकी कहानी बहुत लम्बी है। फिर कभी सुनाऊंगा। मातुश्री कुशल से हैं न ?'
'तेरे वियोग की व्यथा से पीड़ित होकर वे मृत्यु का वरण करने आयी थीं। इतने में ही भाग्यशाली युवक सैनिक ने तेरे जीवित रहने की सूचना दी और वह दुर्घटना टल गई।' ____ महाराजा ने युवक सैनिक को पास बुलाया और कहा-'तू मुझे सभा-भवन में मिलना।'
सैनिक प्रणाम कर चला गया।
वहां से प्रस्थान कर सभी नगर के परिसर में आए। वहां हजारों की भीड़ युवराज को देखने, स्वागत करने की प्रतीक्षा कर रही थी। युवराज को देखते ही आकाश जय-जय की ध्वनि से गूंज उठा।
युवराज राजभवन में पहुंचे। दूर से अपने एकाकी पुत्र को आते देख महादेवी उस ओर दौड़ी। उसे अपार हर्ष हो रहा था। महाबल ने आते ही मातुश्री के चरण छुए। माता ने उसे छाती से चिपका लिया। उसकी आंखों से हर्ष के आंसू उमड़ पड़े। वह बोल नहीं सकी। वहां खड़े सभी दास-दासी रो पड़े। माता-पुत्र का मिलन हृदय को द्रवित करने वाला था। माता ने कहा---'वत्स ! यदि आज तू नहीं मिलता तो मैं प्राण-विसर्जन कर देती। मेरा भाग्य, तू आ गया। यह सारा पुण्य का प्रभाव है । वत्स ! एक अनोखी बात है । तेरा मित्र सुन्दरसेन यहां आया था। वह पुरुष से स्त्री बन गया। अभी तक उसने अपना परिचय नहीं बताया है।' ___'मां ! यह मेरे मित्र से अधिक है 'मेरी जीवनसंगिनी है 'मैं सारा वृत्तान्त फिर सुनाऊंगा। पहले आप हम दोनों को आशीर्वाद दें'-कहते हुए महाबल ने मलया की ओर संकेत किया। मलया महाबल के पास आ गई। दोनों ने मातापिता को चरण छूकर नमस्कार किया।
माता-पिता अवाक् रह गए। महाबल यह क्या कह रहा है ? महाबल ने पिताश्री की उलझन को कुछ सुलझाते हुए कहा-'पिताश्री ! यह आपके परममित्र महाराजा वीरधवल की कन्या राजकुमारी मलयासुन्दरी है । मैंने स्वयंवर में इसे पाया है।'
रानी पद्मावती ने तत्काल मलया को छाती से लगाते हुए कहा—'बेटी ! तूने यह बात पहले क्यों नहीं बतायी ?' ___'मां! वह परिस्थिति ऐसी थी कि मेरी बात पर किसी को विश्वास नहीं होता।'
रानी पद्मावती बोली- 'बेटी ! तुझे क्षमा करना होगा । हमने तेरे से २०२ महाबल मलयासुन्दरी
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