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________________ ३८. विपत्ति के बादल फट गए महाराजा सुरपाल तथा अन्य राजपुरुष उस वट वृक्ष के पास पहुंच गए, जहां महाबल लटक रहा था। महाराजा पुत्र की ऐसी अवस्था देखकर चीख पड़े किन्तु दूसरे ही क्षण वे आश्वस्त होकर वृक्ष पर चढ़ गए। ऊपर जाकर उन्होंने 'विषापहार' मंत्र का स्मरण कर पैरों में बंधे हुए नागपाश बंधन को तोड़ डाला । मंत्रियों ने युवराज को सावधानीपूर्वक झेल लिया। महाराजा वृक्ष से नीचे उतरे । महाबल ने आंखें खोलीं पिताश्री सामने ही खड़े थे अन्य अनेक लोग उपस्थित थे । महाबल ने हाथ जोड़कर पिताश्री को प्रणाम किया । महाराजा तत्काल जमीन पर बैठ गए। पुत्र के मस्तक को अपनी गोद में लेकर सहलाते हुए बोले - 'महाबल ! कैसे हो ? तेरी यह दशा किस दुष्ट ने की ?" महाबल क्षुधा और पिपासा से पीड़ित हो रहा था । उसने आकाश की ओर देखा । अभी सूर्यास्त नहीं हुआ था । उसमें बोलने की शक्ति नहीं थी । उसने संकेत से पानी मांगा । उसी समय एक घुड़सवार पानी का घड़ा ले आया और महाराजा ने अपने हाथों से पुत्र को जलपान कराया । जलपान करने के पश्चात् महाबल कुछ स्वस्थ हुआ। वहां सैकड़ों पौरजन आ पहुंचे थे और वे जोर-जोर से युवराज की जय-जयकार कर रहे थे । महाबल बैठने लगा । इतने में ही महाराजा ने कहा - 'नहीं-नहीं, वत्स ! कुछ समय तक विश्राम और करो । 'पिताश्री ! अब मैं स्वस्थ हूं। मुझे और कोई वेदना नहीं है, आप चिन्ता न करें ।' उसने पुनः एक बार जलपान किया और खड़े होकर हाथ-पैरों को इधरउधर कर अपनी अकड़न मिटायी । महामंत्री ने युवराज का हाथ पकड़ा। युवराज ने मुसकराते हुए कहा'अब मैं पूर्ण स्वस्थ हूं । बंधन की अवस्था के कारण शरीर मात्र अकड़ गया था ।' महाबल मलयासुन्दरी २०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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