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________________ उपासना नहीं, परिहास मात्र है।' ___ 'आप श्रेष्ठ कलाकार हैं "नारी का आकर्षण उसकी निरावरण काया की रेखाओं में उभरता है । आप किसी भी प्रकार का संशय न रखें"आप जितना धन मांगेगे, वह दूंगी।' चन्द्रसेना ने कहा। _ 'देवी ! जिस कलाकृति को देखकर मानव के मन में विकार उत्पन्न होता है; वह कला की उपासना नहीं हो सकती। मुझे क्षमा करें, मैं निरावरण चित्रांकन करने में असमर्थ हूं।' सुशर्मा ने स्पष्ट शब्दों में कहा ।। . चन्द्रसेना आश्चर्यचकित होकर कलाकार को एकटक निहारती रही। कुछ क्षण मौन गुजरे । फिर चन्द्रसेना बोली-'श्रीमन् ! आप मेरी इच्छा के अनुसार चित्रांकन करेंगे तो मुंहमांगा स्वर्ण दूंगी।' ___ 'देवी ! आपकी उदारता को धन्यवाद ! किन्तु कलास्वर्ण से नहीं खरीदी जा सकती 'साधना की प्रत्येक वस्तु मूल्यातीत होती है।' चन्द्रसेना ने एक नया प्रश्न किया--'आप अविवाहित हैं ?' 'नहीं, देवी ! 'मैं विवाहित हूं। आपके प्रश्न का आशय ...?' 'आपने अपनी पत्नी का चित्र बनाया ही होगा ?' 'नहीं।' 'आश्चर्य...।' 'जिसने मेरे चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित कर डाला, उसकी ऐसी इच्छा होगी ही कैसे ?' चन्द्रसेना असमंजस में पड़ गई। थोड़े समय पश्चात् आर्य सुशर्मा ने जाने की आज्ञा मांगी। चन्द्रसेना बोली-'आपकी कलाकृतियों का दर्शन कब ।' 'कल राजा के अतिथिगृह में आप आएंगी तो वहां सारी कलाकृतियां बता पाऊंगा।' सुशर्मा हाथ जोड़, नमस्कार कर वहां से चल पड़ा। आश्चर्य से अभिभूत चन्द्रसेना कलाकार को पहुंचाने प्रांगण तक गई। १२ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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