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________________ - जब कलाकार निकट आया तब सुन्दरी ने दासी के हाथ में पकड़े थाल से माला लेकर सुशर्मा के गले में डालते हुए कहा-'बंग देश के महान् कलाकार का स्वागत कर मैं धन्य हो गई। सुशर्मा ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया। चन्द्रसेना कलाकार को अपने खण्ड में ले गई। एक मुलायम आसन पर उन्हें बिठाकर स्वयं एक आसन पर बैठ गई । फिर उसने पूछा--'आप क्या लेंगे-मैरेय; दूध या हिम...?' 'नहीं, देवी ! मैं जैन श्रावक हूं, इसलिए सूर्यास्त के पश्चात् कुछ भी ग्रहण नहीं करता। आप क्षमा करें !' चन्द्रसेना यह सुनकर अवाक् रह गई। सुशर्मा लगभग तीस वर्ष के युवा-से लगते थे। यह उम्र तो सुखोपभोग की ही होती है । चन्द्रसेना बोली-'आपकी उम्र तो अभी...' . सुशर्मा ने हंसते हुए बीच में कहा---'मेरी उम्र इकतीस वर्ष की है।' 'तो फिर इस छोटी उम्र में रात्रि-भोजन का त्याग क्यों ?' 'देवी ! पारिवारिक परम्परा से ऐसा ही अभ्यास है और रात में खानेपीने का प्रयोजन भी मुझे समझ में नहीं आता।' 'अच्छा; आपसे मिलकर मुझे परम हर्ष हुआ है।' 'आपने मुझे क्यों याद किया ?' सुशर्मा ने पूछा । 'आपकी चित्रकला अद्भुत है, उसकी प्रशंसा सुनकर ही मैंने आपको यहां बुला भेजा है । मेरे एक चित्रांकन की अभिलाषा है।' 'आपका ?' 'हां।' 'किन्तु मैं तीन दिन के बाद यहां से प्रस्थान कर दूंगा। फिर भी मैं इस अवधि में आपका चित्र बना दूंगा । आपको जिस वेशभूषा में चित्रांकन कराना है, उसे आप अभी पहनकर आएं। मैं इसी समय चित्रांकन करके दे दूंगा...' सुशर्मा ने सहज स्वरों में कहा। चन्द्रसेना ने दूर खड़ी एक परिचारिका को संकेत किया और वह तत्काल खण्ड से बाहर चली गई। चन्द्र सेना तब बोली-'कलाकार ! मुझे मेरा अनोखा चित्रांकन करवाना है।' 'मैं समझा नहीं।' 'मैं अपना निरावरण चित्रांकन देखना चाहती हूं। वस्त्रों के ढके शरीर में सौन्दर्य का यथार्थ स्वरूप प्रत्यक्ष नहीं होता।' ___'यह मिथ्या तथ्य आपको कहां से प्राप्त हुआ? आपका रूप और यौवन किसी भी वेशभूषा में खिल उठेगा। निरावरण चित्र का अंकन कला की महाबल मलयासुन्दरी ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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