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________________ है और अपने भवन में आने का निमन्त्रण भेजा है।' 'देवी चन्द्रसेना'..?' 'इस नगरी की कलामूर्ति देवी चन्द्रसेना का नाम आपने नहीं सुना ?' 'जी, नहीं.. मैं इस नगरी से सर्वथा अपरिचित हैं।' 'तब तो आप मेरे साथ ही चलें । देवी चन्द्रसेना आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं । मैं उनकी मुख्य परिचारिका विनोदा हूं।' ___ सुशर्मा विचारों में उलझ गया । इस स्त्री को क्या उत्तर दे ? देवी चन्द्रसेना कौन है ? कलाकार को विचारमग्न देखकर विनोदा बोली-'आप तनिक भी सन्देह न करें। आपकी कला की प्रशंसा सुनकर ही देवी ने आपसे साक्षात् करना चाहा है । आप मेरे साथ चलें ।' 'क्या देवी से मिलने का यह समय अनुकूल रहेगा ?' । 'हां, यह समय उनसे बातचीत करने के लिए अनुकूल है।' 'अच्छा,' कहकर कलाकार अन्दर गया और कन्धे पर उत्तरीय रखकर तत्काल आ गया। दोनों रथ पर बैठे । रथ गतिमान हुआ। चारों ओर दीपमालिकाओं का प्रकाश प्रसृत हो चुका था। नगरी के देवालयों में सांयकालीन आरती की झालरें बज रही थीं। सुशर्मा रथ के जालीदार परदे से नगरी की शोभा देख रहा था। उसके मन में बार-बार यह संशय उभर रहा था, देवी चन्द्रसेना कौन है ? उसने विनोदा से यह प्रश्न पूछ ही लिया। विनोदा बोली-'कलाकार ! आपके इस प्रश्न को सुनकर मुझे आश्चर्य हो रहा है। समग्र दक्षिण भारत में चन्द्र सेना रजनीगंधा की सौरभ की भांति सुप्रसिद्ध है। सुशर्मा के प्रश्न का उत्तर नहीं आया । मन उलझा ही रहा । थोड़े समय के पश्चात् वह रथ एक विशाल उपवन वाले भवन के मुख्य द्वार में प्रविष्ट हुआ। रथ प्रांगण में जाकर रुका। विनोदा और सुशर्मा-दोनों रथ से नीचे उतरे । भवन की सोपान-श्रेणी पर पैर रखते ही भवन की आठ-दस परिचारिकाओं ने सुशर्मा पर पुष्पवृष्टि की । कलाकार ने सामने देखा । उसकी दृष्टि एक नारी पर अटक गई। उसकी आयु पचीस वर्ष की होगी। वह मुसकरा रही थी। उसके नयन मर्मवेधक थे। उसके उरोज उन्नत थे। वह षोडशी-सी लगती थी। सुशर्मा ने सोचा, क्या यही चन्द्रसेना है ? क्या यह नर्तकी या संगीतज्ञा है ? १० महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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