________________
उसी वस्तु या दृश्य की आकृति को उभार देते हैं। यह केवल कला की आराधना का परिणाम है। कोई भी व्यक्ति इस कला को हस्तगत कर सकता है।' __राजा ने कहा-'आर्य सुशर्मा ! मैं तुम्हारी कला पर मुग्ध हूं। तुम हमारे परिवार के सदस्यों के कुछ चित्रांकन करो। यह मेरी अभिलाषा है।'
कलाकार ने राजाज्ञा को शिरोधार्य किया । राजा ने उसे बहुमूल्य पारितोषिक दिया।
राजा ने कहा-'आर्य सुशर्मा ! सबसे पहले तुम राजकन्या मलयकुमारी का चित्र बनाओ, फिर अन्य सदस्यों के चित्र तैयार करना।'
आर्य सुशर्मा ने सबसे पहले मलयकुमारी का चित्रांकन प्रारम्भ किया। उसने मलयकुमारी को देखा। उसे लगा, चौदह वर्ष की यह कन्या साक्षात् देवांगना है। मैंने अनेक रूपवती स्त्रियों का चित्रांकन किया है, अनेक राजपरिवार की स्त्रियों को देखा है परन्तु ऐसा सौम्य-सुन्दर स्वरूप अन्यत्र कहीं नहीं देखा। यह मलयकुमारी या तो सरस्वती का ही अवतार है या कोई शापित देवकन्या मनुष्य भव में आयी है । यदि ऐसा नहीं होता तो इतना रूप, ऐसी माधुरी और ऐसा सौम्य तेज नहीं होता।
चित्रकार ने दो दिनों में ही मलयकुमारी का चित्र तैयार कर दिया। राजपरिवार के लोगों ने उसे बहुत पसन्द किया।
चित्रकार ने यह भी सोचा था कि ऐसी सुन्दर-सौम्य कन्या को उपयुक्त वर भी प्राप्त होना चाहिए । इसलिए उसने एक छोटा चित्रांकन अपने उपयोग के लिए अपने पास ही रख लिया। वह अनेक राजाओं और राजकुमारों से परिचित था, उनके पास आता-जाता था। उसने कुमारी के हितचिन्तन से ऐसा किया था।
चित्रकार बारह दिन तक वहां रहा। उसने राज-परिवार के अनेक लोगों का चित्रांकन किया। राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ। महाराजा वीरधवल ने उसे पारितोषिक देकर, दो दिन और रुकने के लिए कहा।
उसी सांझ चित्रकार ने देखा कि उसके अतिथिगृह के समक्ष एक रथ खड़ा है। रथ सुन्दर था। रथ के अश्व श्वेत थे। रथ का शिखर संध्या की अन्तिम किरणों से जगमगा रहा था। ___रथ से एक अधेड़ उम्र की स्त्री उतरी। वह सुशर्मा के कमरे की ओर गई । सुशर्मा विश्राम कर रहा था। उस स्त्री ने पूछा-'सुप्रसिद्ध कलाकार आर्य सुशर्मा ।'
'हां, मैं ही हूं। कहें, क्या आज्ञा है ?' अधेड़ स्त्री बोली-कलाकार ! देवी चन्द्रसेना ने आपका कुशलक्षेम पूछा
महाबल मलयासुन्दरी ६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org