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________________ सकता है ? अरे, फिर उसे मेरे तिलक को पोंछने को किसने कहा ? उसने तिलक क्यों पोंछा ? मुझे असली रूप में क्यों लाया ? ____ मलया को ये प्रश्न ब्याकुल कर रहे थे। वह इनका उचित समाधान नहीं निकाल पा रही थी। उसने सोचा, जो नारी क्रन्दन कर रही थी, वह मानवी नहीं, कोई व्यन्तरी होगी। उसी ने मेरे स्वामी को अपने मायाजाल में फंसाया होगा। उसी व्यन्तरी ने नागरूप धारण कर यह सारा कांड किया होगा। उसे यह कल्पना ही नहीं थी कि परोपकार-परायण उसका स्वामी महाबल एक वट-वृक्ष की शाखा पर नागपाश से जकड़ा हुआ लटक रहा था। उसके पैर ऊपर और सिर नीचे है। यदि समय पर उसे सहायता नहीं मिली तो वह अनन्त वेदना को सहता हुआ प्राण त्याग देगा। उसे इस वृत्तान्त का पता कैसे चलता ? संसार विचित्र है। इसमें अचिन्त्य और अकल्पित घटनाएं घटती हैं और अनन्तशक्ति को धारण करता हुआ मानव भी उसके सामने तुच्छ हो जाता है। महाबल को ढूंढ़ने के लिए गए हुए सैनिकों ने वन का चप्पा-चप्पा छान डाला, पर कहीं भी युवराजश्री का अता-पता नहीं लगा। जो भी, जिधर भी जाता, वह निराश होकर लौट आता। पर प्रयत्न चालू था। __ महादेवी की आतुरता बढ़ रही थी। उनके प्राण महाबल की याद में सूख रहे थे। उसने सोचा--मेरे कारण ही तो महाबल घर से निकला था। मेरे कारण ही तो उसको विपत्तियों का सामना करना पड़ा था। अरे, सब कुछ हुआ, पर अब वह है कहां? क्या वह मर गया ? क्या किसी ने उसका अपहरण कर डाला? अनर्थ हुआ। मैं अपने इस अपराध के लिए कड़ा प्रायश्चित करूंगी। मुझे प्राणत्याग करना होगा । यही मेरे लिए श्रेयस्कर है । महादेवी ने अपना अंतिम निर्णय महाराजा सुरपाल को बताया और प्राणत्याग की वेला निश्चित कर दी। ___इस अप्रत्याशित वृत्तान्त से सारा पृथ्वीस्थानपुर नगर शोक में डूब गया। आबालवृद्ध नर-नारी इस वृत्तान्त को सुनकर दहल उठे । महादेवी अपने निश्चय पर दृढ़ थी। उसे समझाने का प्रयत्न हुआ, पर सब व्यर्थ । ___ महाराजा सुरपाल भी महादेवी की अतुल व्यथा से व्यथित हो गए। उन्होंने भी आत्मविसर्जन का निश्चय कर लिया और महादेवी के साथ ही जलती चिता में आत्म-दाह करने का विचार व्यक्त किया। ___ सारा नगर करुण-क्रन्दन से गूंज उठा। सर्वत्र हाहाकार, रुदन और क्रन्दन.। अपने प्रियरक्षक महाराजा और महादेवी के आत्मदाह के कथन ने सबको विचलित कर डाला। इधर मात्र आधे कोस की दूरी पर सघन वन के बीच एक वट-वृक्ष पर महाबल मलयासुन्दरी १६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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