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________________ बच जाता । वह कुछ नहीं बोला “जहां लोभसार का शव लटक रहा था, उसी वट वृक्ष की दूसरी शाखा पर वह भी औंधे मुंह लटक गया। उसने देखा, उसके दोनों हाथ नागपाश की भांति जकड़ लिये गए हैं। उसके पैर भी बांध दिए गए हैं । अब यहां से कैसे छुटकारा मिले ? इस निर्जन वन- प्रदेश में कौन आकर मुझे बंधनमुक्त करे महाबल को तब लोभसार के शव ने जो भविष्यवाणी की थी, उसकी स्मृति हो आयी । तत्काल वह शांत हुआ । उसने सोचा, नाग के स्वरूप से छुटकारा मिला तो नागपाश में बंध गया । अवश्य ही किसी देवी ने कुपित होकर यह किया है । अरे, मैं योगी को भी नहीं बचा सका । कर्म की गति बड़ी विचित्र होती है। कौन समझ सकता है इसके प्रभाव को ? ऐसी स्थिति में धर्म की शरण और स्मरण ही उत्तम है, कल्याणकारी है। यदि कोई मुझे बंधनमुक्त नहीं करेगा तो मुझे इसी प्रकार लटकने लटकते मौत का वरण करना होगा। मौत न बिगड़े, इसका मुझे ध्यान रखना है । जीवन न सुधर सका तो कोई बात नहीं, मृत्यु को नहीं बिगाड़ना है । उसको सुधारना तो मेरे हाथ में है । महाबल सभी विचारों को दूर कर, नवकार मंत्र का जाप करने लगा । उसने अरिहंत की सौम्य आकृति को हृदय में स्थापित कर नमस्कार महामंत्र की आराधना प्रारम्भ कर दी । रात्रि की जिस विकट वेला में महाबल भयानक विपत्ति में फंस चुका था, उसी समय सैकड़ों आदमी महाबल की खोज में उस वन- प्रदेश में घूम रहे थे । कुछ सैनिक नदी के तट पर घूम रहे थे, कुछ अन्य दिशाओं में घूम रहे थे, परन्तु कोई भी इस ओर नहीं आ रहा था । वन- प्रदेश इतना गहन था कि यदि कोई इस वृक्ष के पास से भी गुजर जाता तो भी उसे लटकते शव नहीं दिख पाते । महाराजा और महादेवी अत्यधिक चिन्तातुर हो रहे थे । वे बार-बार महाबल के विषय में पूछताछ कर रहे थे । 1 इस प्रकार आधी रात बीत गई। महाराजा और महादेवी को नाग से मिले लक्ष्मीपुंज हार के विषय में आश्चर्य हो रहा था। वे सोच रहे थे; नाग कौन था ? उसके पास लक्ष्मीपुंज हार कैसे - आया ? क्या नागदेव था ? इस प्रकार के प्रश्नों में दोनों उलझ रहे थे । इधर मलया अपने खंड में एक शय्या पर सो रही थी । उसे भी नींद नहीं आ रही थी । उसका मन होता कि वह अपना सही परिचय दे दे । परन्तु फिर सोचती, कौन विश्वास कर पाएगा ! विपत्ति और बढ़ेगी। महाबल के आने के पश्चात् ही सारा रहस्य खुलेगा । वह सोचती, महाबल कहां होगा ? वह नाग कौन था ? उसके पास लक्ष्मीपुंज हार कहां से आया? मैंने वह हार तो महाबल को सौंपा था। क्या महाबल नाग बन गया ? नहीं नहीं, मनुष्य नाग कैसे बन १६६ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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