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यह दिव्य नहीं किया जाता तो बड़ा अनर्थ हो जाता।' ___मलया लक्ष्मीपुंज हार महादेवी को देती हई बोली-'कुछ भी हो, लक्ष्मीपुंज हार प्राप्त हो गया है। आप निश्चित बनें और युवराजश्री की प्रतीक्षा
करें।
__ 'मेरा महाबल कहां होगा?' महादेवी ने वेदना के स्वरों में कहा।
महामंत्री ने कहा-'महादेवी ! जैसे लक्ष्मीपुंज हार मिला है, वैसे ही युवराजश्री भी आ मिलेंगे। आप चिन्ता न करें।'
सूर्यास्त के बाद सभी नगर की ओर चल पड़े।
रथ में बैठने के पश्चात् मलया ने सोचा-रात को जो नारी रूदन कर रही थी, संभव है वह प्रेतनी हो और उसी ने मेरे स्वामी को सर्परूप में बदला हो? क्योंकि मेरे तिलक की और लक्ष्मीपुंज हार की बात उनके सिवाय किसी को ज्ञात नहीं थी।
तत्काल मलया के मन में दूसरा विचार उभरा-यदि उस प्रेतनी ने महाबल को सर्परूप में बदला होता तो यह सर्प इन गारुडिकों के हाथ में नहीं आता।
'तो यह सब क्या है ? महादेवी ने कहा- 'मैं आपको किस नाम से पुकारूं ?'
'महादेवी ! अब मेरा पुरुषरूप जाता रहा, इसलिए आप मुझे सुंदरी कहकर पुकारा करें।'
'सुंदरी ! मैं सोच रही हं, तेरा यह योनि-परिवर्तन कैसे हआ ?'
बीच में मलया बोली-'महादेवी ! संसार की माया विचित्र है । यहां अघटित घटित हो जाता है। इसकी चिन्ता हम क्यों करें ? जब आप मेरा पूरा. वृत्तान्त जानेंगी, तब आपको अपार हर्ष होगा।'
'तो तू मुझे अपना वृत्तान्त बता क्यों नहीं देती ?'
'मेरे मित्र के मिल जाने पर, मैं सब कुछ बता दूंगी। तब तक आपको धैर्य रखना होगा।'
'जैसी तेरी इच्छा।'
रात्रि के दूसरे प्रहर में सब राजभवन में पहुंच गए। उस समय रक्षक ने महादेवी को एक पत्र देते हुए कहा—'चंद्रावती नगरी का एक दूत आया है और उसने एक निमित्तक का यह पत्र दिया है।'
'निमित्तक का पत्र'-महादेवी का आश्चर्य वृद्धिंगत हुआ। उसने वह पत्र महाराजा को दे दिया।
किन्तु मलया समझ गई थी। निमित्तक के रूप में महाबल ने ही माता को संदेश-पत्र भेजा था।
महाबल मलयासुन्दरी १६१
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