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________________ महाराजा ने कहा-'नौजवान ! इस घट के समक्ष बैठ जा। इस घट का ढक्कन खोलकर उसमें दायां हाथ डाल । यदि तेरा कथन सही होगा तो तेरा कछ नहीं बिगड़ेगा । यदि तेरा कथन असत्य होगा तो सर्पदंश से तेरी तत्काल मृत्यु हो जाएगी।' _ 'मुझे मेरे सत्य पर पूरा विश्वास है'-कहती हुई मलया घट के समक्ष बैठ गई। मन में नवकार महामंत्र का स्मरण करती हुई बोली-'हे सर्पदेव ! यदि मेरा यह कथन कि महाबल मेरा प्रिय मित्र है, उसने ही मुझे ये वस्त्र दिए हैं, सत्य हो तो तुम मुझे मत डसना; अन्यथा मुझे डस डालना।' ऐसा कहकर मलयासुंदरी ने घट में दायां हाथ डाला । नवकार महामंत्र का जाप चल रहा था। ___ उसी क्षण वह सर्प मलया के हाथ पर चढ़ा और ललाट पर लगे तिलक को साफ कर डाला और मुंह से लक्ष्मीपुंज हार निकालकर मलया की गोद में डाल दिया। सर्प पुनः घट में चला गया। सब आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगे। एक अद्भुत चमत्कार घटित हुआ। मलया के ललाट का तिलक मिटते ही वह सुंदर नारी बन गई.. और लक्ष्मीपुंज हार उसकी गोद में चमकने लगा। । वहां बैठे हुए सभी बोल उठे–'निर्दोष ! निर्दोष !' किन्तु पुरुष से यह नारी कैसे हो गई? लक्ष्मीपुंज हार इस सर्प के पास कहां से आया? क्या यह कोई देवसर्प है ? । सभी के मन में ऐसे अनेक प्रश्न उभर रहे थे। किन्तु सबसे अधिक मलया विस्मित हो रही थी। इस सर्प के पास लक्ष्मीपंज हार कहां से आया? इस सर्प ने मेरे तिलक को क्यों मिटाया ? इसने मुझे पुरुष से स्त्री क्यों बनाया ? मेरे स्वामी महाबल की जीभ के सिवाय उस तिलक को कौन मिटा सकता है ? क्या यह सर्प कोई देव है ? . महामंत्री ने महाप्रतिहार से कहा-'यह दिव्य-सर्प है। गारुड़िकों को कहो कि वे इस सर्प को जहां से लाएं हैं; वहीं छोड़ आएं। इस सर्प को तनिक भी हानि नहीं पहुंचनी चाहिए, इसकी वे सावधानी रखें । सर्प को दुग्धपान करवाकर भेजना है।' महाप्रतिहार ने तत्काल घट को ढंका और उसे उठाकर वाहर ले गए। महाराजा ने कहा—'युवक ! मेरा आश्चर्य सीमा पार कर रहा है । तु पुरुष से नारी कैसे हो गई ?' ___'महाराज ! मैं भी इस बात से आश्चर्यचकित हूं। अब तो आपको विश्वास हो गया होगा कि महाबल मेरा परम मित्र है । ये वस्त्र उन्हीं के दिए हुए हैं।' ___ महाराजा ने कहा---'आज मैं एक महान् अन्याय के दोष से बचा हं । यदि. १६० महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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