SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'अच्छा''परन्तु क्या यहां आप अकेले हैं ?' 'हां, मैं अकेला हूं। ठीक स्मृति दिलायी आपने । यह वन बहुत भयंकर है, किन्तु मुझे एक समाधान दीख रहा है।' 'क्या?' 'यदि आप चाहें तो योनिप्राभृत विज्ञान के प्रयोग द्वारा मैं आपको मनुष्येतर प्राणी के रूप में बदल देता हूं। फिर आप निर्भय होकर यहां बैठे रहें।' महाबल बोला-'योगीराज ! मुझे किसी प्रकार के भय की आशंका नहीं रहती। मैं आपके योनिप्राभूत विज्ञान का चमत्कार देखना चाहता हूं.'आप मुझे अन्य योनि में बदल दें।' योगी ने तत्काल अपनी झोली से एक वनस्पति का मूल निकाला और कहा---'कुमारश्री ! आपको नग्न होना पड़ेगा।' ___कोई आपत्ति नहीं हैं-कहता हुआ महाबल नग्न हो गया और अपने सारे कपड़े एक पोटली में बांध दिए, किन्तु लक्ष्मीपुंजहार को अपने मुंह में छिपा लिया। योगी ने वनस्पति के उस मूल को घिसा और उसे एक सुक्ति में निकाल दिया। फिर उसमें दो द्रव्य और मिलाए, अंगुली से उन सबका मिश्रण कर, उसका तिलक महाबल के ललाट पर किया। ___और देखते-देखते पदार्थ-विज्ञान का अद्भुत चमत्कार घटित हुआ। महाबल कुछ ही क्षणों में नाग बन गया-पुष्ट, दीर्घ और अत्यन्त कृष्ण । योगी बोला-- 'युवराजश्री ! आप किसी प्रकार का संशय न करें। मैं आपको सामने वाली शिला की एक लघु गुफा में रख देता हूं."सायंकाल के समय आकर मैं आपको मूलरूप में ला दूंगा।' नाग बने हुए महाबल ने फन को झुकाकर नमस्कार किया। योगी नागरूपी महाबल को एक छोटी गुफा में रख आया। फिर वह वनस्पति द्रव्यों का संग्रह करने वन-प्रदेश में चला गया। ___ महाबल उस गुफा में पड़े-पड़े अनेक विचार करने लगा। यदि यह योगी वापस न आए तो फिर क्या होगा? मुझे नाग से मूलरूप में कौन लायेगा? यदि किसी कारणवश योगी की मृत्यु हो जाए तो फिर मेरी क्या दशा होगी? ओह ! कुतूहल के वशीभूत होकर मैंने यह भयंकर भूल कर डाली। इस वनप्रदेश में मुझे कुछ भी भय नहीं था। मैं दिन में नगर में जाकर सायं यहां आ सकता था । परन्तु अब क्या हो ? इस प्रकार के अनेक प्रश्नों में महाबल का मन उलझ गया। मलया चली जा रही थी। उसकी दशा भी विपत्तिमय थी। वह स्वामी को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते बहुत दूर निकल गई थी। उसे कहीं महाबल दृष्टिगोचर नहीं हुआ। महाबल मलयासुन्दरी १८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy