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________________ दूसरी ओर यदि नगर में न जाए तो माता-पिता आत्मदाह कर लेंगे। उसने कहा - ' योगिराज ! परिस्थिति विकट है यदि मैं कल मध्याह्न तक नगर में न पहुंचूं तो माता-पिता के प्राण - विसर्जन का दोषी बनता हूं और इस वन में मैं अपने एक मित्र को अकेले ही छोड़ आया हूं ।' योगी ने बहुत प्रार्थना की तो महाबल ने उसको स्वीकृति दे दी । महाबल मलया को जहां छोड़ गया था, वहां त्वरित गति से आ पहुंचा । किन्तु वहां मलया नहीं थी । महाबल चिन्तातुर हो गया । मलया कहां गई होगी ? क्या किसी ने उसका अपहरण कर डाला ? महाबल ने चारों ओर देखा । प्रातःकाल का प्रकाश प्रसृत हो रहा था उसकी दृष्टि में मलया का पता नहीं चला । केवल मलया के वस्त्रालंकार जो एक वस्त्र -खंड में बंधे हुए वृक्ष की डाल पर लटक रहे थे, वे दिखे। आस-पास दो-चार चक्कर लगाकर महाबल ने जोर से पुकारा - 'मलया मलया!' परन्तु कौन उत्तर दे ? मलया तो स्वामी को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते बहुत दूर चली गई थी । महाबल ने नवकार मन्त्र का जाप प्रारम्भ किया और पुनः योगी के पास लौट आया । योगी ने पूछा - 'युवराजश्री ! क्या आपका मित्र साथ में नहीं आया ?' 'योगीराज ! जिस स्थान पर मैं उसे छोड़कर आया था, वहां वह है नहीं ।" 'संभव है वे आपकी प्रतीक्षा करते-करते थक गये हों और पृथ्वीस्थानपुर की ओर चले गये हों ?' 'मेरा मित्र इस प्रदेश में सर्वथा अनजान है ।' महाबला ने चिन्ता भरे स्वरों में कहा । 'आप चिन्ता न करें वे अवश्य आपको मिलेंगे, मेरा आशीर्वाद है कि वे तथा आपके माता-पिता सकुशल रहेंगे । उनका बाल भी बांका नहीं होगा' - कहते हुए योगी ने आंखें बंद कीं, दोनों हाथ ऊंचे किए और मन्त्रोच्चार किया । उषा का स्वर्णिम प्रकाश वन- प्रदेश में फैल चुका था सूर्य का उदय होने वाला था । योगी ने कहा- 'कुमारश्री ! आप निश्चिंत रहें। प्रातःकर्म से निवृत्त होकर कुछ फलाहार करें ।' सूर्योदय हो गया । महाबल प्रातः कर्म से निवृत्त हुआ । योगी ने उत्तम प्रकार के फल दिए । महाबल ने उन्हें खाकर ताजगी और तृप्ति का अनुभव किया । योगी ने कहा - ' कुमारश्री ! अब आप उस कुटीर में रहें । मैं कुछ वनस्पति द्रव्यों को एकत्रित करने वन में जा रहा हूं | सायंकाल तक लौटूंगा ।' १८४ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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