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जाती तो इस विपत्ति का सामना नहीं करना पड़ता ।। - मलया ने नमस्कार महामंत्र का जाप प्रारम्भ किया और आगे कदम बढ़ाए। . इधर महाबल उस वृक्ष की डाल पर लटक रहे लोभसार के शव को आश्चर्य भरी दृष्टि से देख रहा था। ऐसा चमत्कार उसने न सुना था और न देखा 'था' 'वह शव को पुनः उठाने के लिए ऊपर चढ़ा और इस आश्चर्य पर हंसने लगा। इतने में ही शव भी जोर-जोर में हंस पड़ा । उसने कहा-'याद रखना तू मेरी इस दशा पर हंस रहा है, परन्तु तुझे इस वृक्ष की डाल पर लटकना होगा
और उस समय तेरा मुंह औंधा होगा।' ' यह सुनकर महाबल अवाक रह गया। निष्प्राण शरीर कभी इस प्रकार बोल नहीं सकता''यह कैसा चमत्कार है ? संसार में किसी ने शव को बोलते नहीं सुना''ऐसा होना संभव भी नहीं है. क्योंकि चेतना निकल जाने पर सारी शक्तियां चुक जाती हैं. "तो फिर यह शव क्यों, कैसे बोल रहा है ? ___ इस स्थान पर यदि कोई दूसरा व्यक्ति होता तो उसकी छाती फट जाती
और वहीं प्राण छोड़ देता। परन्तु महाबल निडर और साहसी था। उसने लोभसार का शव उतारा और अपने कंधों पर लादकर ले चला।
योगी प्रतीक्षा कर ही रहा था । उसकी दृष्टि आकाश की ओर बार-बार जा रही थी. इस सिद्धि के लिए जिन तारों-नक्षत्रों की उपस्थिति आवश्यक थी, वे सारे अस्त होने ही वाले थे।
और महाबल शव को लेकर पहुंच गया।
योगी ने तत्काल क्रिया प्रारम्भ की 'शव को एक वर्तुल में रखा, उस पर अंजली फेंकी और तत्काल शव उठकर पुनः चला गया।
योगी और महाबल अवाक् बनकर देखते रहे''महाबल ने कहा'योगीराज ! यह कैसे हुआ ?' .. ___ 'मन्त्रोच्चारण में यदि कोई अशुद्धि रह जाए तब ही ऐसा हो सकता है, अन्यथा नहीं। मुझे विश्वास है कि मन्त्र के उच्चारण में कोई त्रुटि नहीं है। अब तो अवसर बीत गया। कल ही कुछ हो सकेगा।' - महाबल बोला- 'महाराज ! मैं कल रात यहां नहीं रुक सकता। मुझे नगर में जाना ही होगा।'
'युवराजश्री ! आप दयालु हैं। आपने मेरे पर कृपा की है और मैंने आपको उत्तर-साधक के रूप में मन्त्रपूत किया है। यदि आप नहीं रुकेंगे तो मेरा कार्य अधूरा रह जाएगा। और अब मैं आपके सिवाय दूसरे किसी को उत्तर-साधक नहीं बना सकता । आप कल रात तक यहां रुकें। मैंने वर्षों के प्रयत्न से इस सिद्धि को प्राप्त किया है, मुझे निराश न करें।'
उदारमना महाबल सोचने लगा। एक ओर पत्नी के अकेली होने की चिन्ता,
महाबल मलयासुन्दरी १८३
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