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________________ ३५. विपत्ति के बादल इस भयंकर वन में नारी का जो विकट और करुण क्रन्दन सुनाई दे रहा था; वह कुछ समय पूर्व ही बंद हो चुका है। फिर भी स्वामी अभी तक क्यों नहीं आए ? यह प्रश्न मलया के हृदय को मथने लगा। क्या स्वामी किसी विपत्ति में फंस गए? रात भी थोड़ी अवशिष्ट है । मुझे अकेली यहां कितने समय तक बैठना होगा? कब तक मैं इन्तजार करती रहूंगी? अरे, मैं प्रतीक्षा न करूं तो फिर जाऊं किस ओर ? यह प्रदेश सर्वथा अनजाना है। 'विकट और भयंकर अटवी. 'अटवी कितनी भी भयंकर क्यों न हो, मुझे अपना कर्तव्य करना ही होगा "मुझे ही स्वामी की खोज में निकल जाना चाहिए। यह सोचकर मलया ने चारों ओर देखा मुझे किस दिशा में जाना चाहिए? स्वामी तो सीधे गए थे."नहीं"नहीं, बाएं गए थे.''नहीं-नहीं; दाएं गए थे। ओह, चिन्ता के कारण मन भ्रमित हो गया है क्या ? उसने सोचा-मैं यहां से जाऊं और यदि स्वामी आ गए तो ? नहीं, वे यदि आते तो कभी के पहुंच जाते. निश्चित ही वे किसी-न-किसी विपत्ति में फंस गए हैं. "संभव है रुदन करने वाली वह नारी इनको अपने साथ ले गई हो और वह नारी किसी प्रेतयोनि की होगी और निश्चित ही उसने मेरे स्वामी को अपने जाल में फंसा लिया होगा। - यह विचार आते ही मलया कांप उठी। उसको यह ज्ञात ही कैसे हो कि परोकार करने में प्रवीण महाबल अभी एक योगी का सहयोग कर रहा है। . __मलया ने आकाश की ओर देखा। उसने जाना कि रात्रि का तीसरा प्रहर पूरा हो चुका है और थोड़े समय बाद ही प्रातःकाल हो जाएगा: 'नहीं-नहीं, मुझे भयमुक्त होकर उनकी टोह में निकल जाना चाहिए। और मलयासुन्दरी महाबल की टोह में निकल पड़ी। किन्तु जिस दिशा में महाबल गया था, उस ओर न जाकर वह विपरीत दिशा में चली। वह दिग्भ्रान्त थी। __ वह आगे बढ़ती रही। वह सोच रही थी कि यदि वह स्वामी के साथ चली १८२ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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