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महाबल ने शव वहां रख दिया।
योगी बोला-'वत्स ! यह स्वर्ण-सिद्धपुरुष की सिद्धि अपूर्व है। मैं इस शव को अग्नि में डालूंगा और मंत्र-विज्ञान के प्रभाव से यह तत्काल स्वर्ण का बन जाएगा । फिर इसमें से कितना ही स्वर्ण निकाला जाए, यह कभी पूरा नहीं होगा।'
'कभी पूरा नहीं होगा?' महाबल ने आश्चर्य के साथ कहा।
'हां, यह शव स्वर्णसिद्धि बन जाएगा। इस स्वर्ण-पुरुष के किसी भी अंग को काटकर स्वर्ण लिया जाएगा तो तत्काल वह अंग मूल रूप में हो जाएगा।' योगी ने कहा। ___महाबल बोला-'भव्य सिद्धि । अब क्या आज्ञा है ? मैं शीघ्र यहां से जाना चाहता हूं।'
'मैं जानता हूं, कुमार ! मैं इस शव का होम कर दूं। यह स्वर्ण-सिद्ध हो जाए। अब तू अपने हाथों में नंगी तलवार लेकर इस वर्तुल में खड़ा रह ।'
महाबल निर्भयतापूर्वक उस निर्धारित स्थान में खड़ा हो गया। उसके हाथ में तलवार थी।
योगीराज ने तत्काल मंत्रोच्चारण प्रारम्भ किया और शव पर जल छिड़का "तीसरी बार शव पर पानी की अंजली छिड़ककर ज्यों ही योगी मंत्रोच्चारण करने लगा, तब तत्काल शव उठा और उस ओर जाने लगा जहां वह लटक रहा था।
योगी अवाक् रह गया। महाबल को आश्चर्य हुआ।
योगी ने कहा-'मंत्रोच्चारण में कोई अशुद्धि नहीं रही तो फिर ऐसा क्यों हुआ? वत्स! तुझे पुनः कृपा करनी होगी "तू जल्दी जा और शव को पुनः ले आ।
महाबल तत्काल चला। उसके मन में मलया का प्रश्न घुलने लगा। उसने सोचा---'वह बेचारी कितनी चिन्ता कर रही होगी? कोई वन्य पशु आ जाएगा तो क्या होगा ? मैं उसे अकेली क्यों छोड़ आया? यह कोई उचित नहीं हुआ। साथ में ले आता तो ठीक रहता। वह भी निश्चित रहती और मैं भी निश्चित रहता। अब यहां से कब छुटकारा मिले और कब उससे जा मिलूं।'
इन विचारों में उलझा हुआ महाबल योगी का कार्य सम्पन्न करने के लिए उसी वृक्ष के पास आ पहुंचा।
उसने आश्चर्य के साथ देखा कि लोभसार का शव उसी शाखा पर लटक गया है।
महाबल मलयासुन्दरी १८१
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