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________________ कनकावती राजी होकर खड़ी हो गई। महाबल वृक्ष के नीचे गया और लटकते हुए शव के नीचे 'घोड़ी' बनकर खड़ा हो गया। रानी कनकावती तत्काल महाबल की पीठ पर चढ़ी और लोभसार के मुंह का अंतिम चुंबन लेने लगी। ____ और तब अकल्पित चमत्कार हुआ'लोभसार के मुंह का चुंबन लेते समय ही शव ने कनकावती का नाक मुंह से काट खाया। कनकावती जोर से चिल्ला उठी। शव के मुंह में कनकावती की नाक का टुकड़ा रह गया। महाबल भी उस चिल्लाहट से चौक पड़ा। कनकावती अपने उत्तरीय से नाक को ढंककर नीचे उतर गई। 'मेरी नाक ...' कनकावती आगे बोल नहीं सकी। 'आपकी नाक ! क्या हुआ ?' 'मुझे आश्चर्य भी हो रहा है और भय भी लग रहा है। मैं अपने प्रियतम का मुंह सहलाने लगी तो शव ने मेरो नाक को काट खाया।' 'अशक्य ! मरा हुआ व्यक्ति ऐसा कभी नहीं कर सकता। संभव है यहां निवास करने वाले किसी व्यंतर का यह कार्य हो''अब आप जल्दी अपने स्थान चली जाएं और नाक पर बहन ! कुछ ठहरें। मैं एक वनस्पति जानता हूं। यदि वह प्राप्त हो गई तो आपकी कटी नाक से बहने वाला रक्त रुक जाएगा।' यह कहकर महाबल उस वनस्पति को ढूंढ़ने गया। भाग्य से वह मिल गई। महाबल ने उस वनस्पति के कुछ पत्तों को हाथों से मसला, रस निकालकर रानी की नाक पर लगाया और देखते-देखते रक्त का प्रवाह रुक गया। ___ कनकावती की वेदना शांत हुई और वह अपने स्थान की ओर जाने के लिए मुड़ी। ____ महाबल ने साथ चलने के लिए कहा "परन्तु उसने अकेली जाना ही अच्छा समझा। कनकावती के चले जाने के पश्चात् महाबल ने शव को नीचे उतारा और उसे अपने कन्धों पर लादकर योगी की ओर चला। योगी इन्तजार में ही बैठा था। उसने साधना की पूर्व तैयारी सम्पन्न कर ली थी। महाबल को शव के साथ आते देखकर योगी ने प्रसन्न स्वरों में कहा'वत्स ! तेरा कल्याण हो। इस भयंकर वन-प्रदेश में मैंने तुझे कष्ट दिया है किन्तु इसका फल अवश्य मिलेगा।' महाबल बोला-'इस शव को कहां रखना है ?' 'इस वर्तुलाकार रेखा के मध्य में रख दे।' १८० महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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