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________________ महाबल और मलयासुंदरी---दोनों आश्चर्यचकित थे । कुछ भी दिखाई नह दे रहा था, कौन बात कर रहे हैं ? कोई प्रेत आत्माएं तो नहीं हैं ? आवाज भी ऊपर से आ रही है। फिर आवाज सुनाई देने लगी। 'अरे दोस्त ! कल संध्या के समय एक कार्य होगा। पृथ्वीस्थानपुर की रानी पद्मावती आत्मघात कर मरने वाली है।' 'अरे, तूने यह कहां से सुना ? राजा की रानी और आत्मघात ! ऐसा क्यों हो? रानी को दुःख ही क्या होता है ?' 'त नहीं जानता। उनमें अनेक दुःख होते हैं। उनसे तो हम भूत-प्रेत अच्छे हैं। हम जहां जाना चाहें जाते हैं, हमें कोई देख नहीं सकता।' 'अरे, रहने दे अपना अहम् । हमारा भी कोई जीवन है। जीवन भर घूमते रहो और दर-दर की ठोकरें खाते रहो।' ‘रानी आत्मघात क्यों कर रही है ?' 'केवल रानी ही नहीं, राजा भी साथ-साथ मरेगा।' 'अरे, उसका कारण तो बता।' 'रानी का कुछ खो गया है। वह मिला नहीं और एकाकी पुत्र भी कहीं चला गया। रानी अत्यन्त दुःखी होकर प्राण-त्याग कर रही है।' 'अरे, तब तो हम भी वहां चलेंगे। हजारों लोग एकत्रित होंगे। बड़ा मजा आएगा।' 'तुझे चलना है ?' 'हो।' 'तो चल !' दूसरे प्रेत ने कहा। तत्काल महाबल ने प्रियतमा से कहा---'प्रिये !माता-पिता को बचाने के इस अवसर का लाभ उठा लूं । तू जल्दी मुझे लक्ष्मीपुंज हार दे। तू राजभवन में चली जा।' 'परन्तु आप जाएंगे कैसे ?' 'इस वट-वृक्ष का कोटर बहुत बड़ा है। इसमें तीन-चार व्यक्ति छिप सकते हैं।' महाबल बोला। _ 'स्वामिन् ! मैं भी साथ ही चलूंगी। अब मैं एक क्षण भी आपसे विलग नहीं रह सकती।' 'अधिक चर्चा करने का समय नहीं है।' महाबल प्रियतमा को साथ ले विशाल वटवृक्ष के कोटर में बैठ गया और कुछ ही क्षणों के पश्चात् वह वट-वृक्ष विमान की भांति आकाश में उड़ने लगा। महाबल मलयासुन्दरी १७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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