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________________ ३४. शव का चमत्कार व्यंतर देवों की अद्भुत शक्ति होती है। भट्टारिका देवी के मंदिर के पास से दोनों व्यंतर मित्रों द्वारा उड़ाया हुआ वह विशाल वट वृक्ष कुछ ही समय में अलंबगिरि के वन-प्रदेशों में पहुंच गया। जब वट-वृक्ष एक निश्चित स्थान पर पृथ्वी पर टिका, महाबल तत्काल उस वृक्ष के कोटर से बाहर निकला और बोला--'प्रिये ! जल्दी बाहर आ जा, क्योंकि यह वट-वृक्ष तत्काल अपने मूल स्थान पर चला जाएगा।' मलया बाहर निकली "उसी क्षण वह वृक्ष जैसे आया था, वैसे ही लौट गया। दोनों व्यंतर भी चले गए। महाबल ने इधर-उधर देखकर कहा- 'प्रिये ! हम पृथ्वीस्थानपुर के परिसर में आ गए हैं। हम कुछ विश्राम कर लें कुछ दिनों से तुझे नींद लेने का अवसर भी नहीं मिला था.''प्रातः जल्दी उठकर हम यहां से रवाना हो जाएंगे। 'जैसा आप चाहें "किन्तु यह स्थल तो...' 'यह मेरा परिचित स्थान है. यहां से दो-चार कोस की दूरी पर ही मेरा नगर है 'हम सूर्योदय के समय राजभवन में चले जाएंगे।' 'सुन्दर वन-प्रदेश है,' कहकर मलया चारों ओर देखने लगी। अंधकार व्याप्त था, किन्तु आधी रात के बाद चांद की निर्मल चांदनी सारे वन-प्रदेश को नहाने लगी। मंद-मंद और मीठा प्रकाश चारों ओर फैल गया। इस मधुर यामिनी में दोनों प्रकृति के सौन्दर्य का आनन्द लेने लगे। और उसी क्षण दोनों के कानों में किसी नारी का करुण क्रन्दन सुनाई दिया। 'कुछ सुनाई दे रहा है'-मलया ने स्वामी की ओर देखते हुए कहा। 'इसके रुदन में करुणा प्रवाहित हो रही है। कौन है...?' महाबल और मलया दोनों ध्यान से रुदन को सुनने लगे। इस नीरव वातावरण में किसी के दुःख-दर्द भरे स्वर स्पष्ट सुनाई दे रहे थे। महाबल बोला-'तेरे में हिम्मत हो तो मैं अभी इसकी खोज-खबर लेकर आता हूं. "संभव है कोई नारी इस विकट वन-प्रदेश में भटक गयी हो. 'अथवा १७६ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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