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३३. प्रेत की बात
जिस समय रानी कनकावती अपने नये प्रियतम की लाश को वृक्ष पर लटकते हुए देख रही थी, उसी समय चन्द्रावती नगरी के राजभवन के विशाल प्रांगण में स्वयंवर के निमित्त आए हुए राजाओं और राजकुमारों के मनोरंजन के लिए एक भव्य कार्यक्रम नियोजित किया गया था।
इस प्रसंग को आनन्दमय बनाने के लिए राज्य की अन्यान्य नर्तकियों और सुप्रसिद्ध नर्तकी चन्द्रसेना का आगमन भी हुआ था।
चन्द्रसेना स्वयं सुन्दर थी। उसके आभूषणों और वस्त्रसज्जा ने उसके रूप को शतगुणित कर दिया था।
महाबल की हत्या कर मलयासुन्दरी का अपहरण करने के इच्छुक राजकुमार एकत्रित हो चुके थे। इतना ही नहीं, उनके अपने-अपने सशस्त्र अंगरक्षक उनके पीछे सावचेत खड़े थे।
मनोरंजन काक ार्यक्रम प्रारम्भ हुआ।
मलयासुन्दरी अनेक स्त्रियों से परिवत होकर एक ओर बैठी थी। युवराज महाबल महाराजा वीरधवल के पास बैठा था । वह पूर्ण सावधान था। महाराजा ने वहां चारों ओर सशस्त्र सैनिक तैनात कर रखे थे।
मलया का अपहरण करने के इच्छुक राजकुमार उतावले हो रहे थे। उन्हें यह भय था कि यदि यह कार्यक्रम रातभर चलेगा तो कैसे—क्या होगा?
नर्तकियों के नृत्य से सारे प्रेक्षक प्रसन्न हो रहे थे और जब नर्तकीवृन्द ने अपना नृत्य पूरा किया तब राजाओं ने हर्ष-ध्वनि से उनका वर्धापन किया। नर्तकियां अपने-अपने स्थान पर लौट गईं।
राजकुमारों का विद्रोही दल इस अवसर का लाभ उठाने के लिए तैयार हुआ । परन्तु इतने में ही चन्द्रसेना ने अपना नृत्य प्रारम्भ कर दिया। राजकुमारों ने चन्द्रसेना को देखा। वे सब उसके रूप पर मुग्ध हो गए। उसका नृत्य मनोमुग्धकारी था। राजकुमारों ने सोचा-इसका नृत्य पूरा होते ही हम महाबल को मारने के लिए तत्पर हो जाएंगे।
महाबल मलयासुन्दरी १७३
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