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रही थी।
रात्रि का प्रथम प्रहर बीत गया। अंधकार सघन होता गया।
वह अपनी धुन में ठोकरें खाती, गिरती-पड़ती चल रही थी। इतने में ही उसे कुछ ही दूरी पर मन्द-मन्द प्रकाश दिखाई दिया। उसने सोचा, संभव है यहां कोई रहता हो।
वह त्वरित गति से उस ओर चली।
प्रकाश निकट आया। उसने देखा कि एक मशाल जल रही है। किन्तु उसका तेल खत्म हो चुका था, अतः वह टिमटिमा रही थी।
वह निकट गई । सहसा उसकी दृष्टि वृक्ष की शाखा से लटकते हुए शव पर पड़ी। ___कनकावती डरकर चार कदम पीछे हट गई--अरे, यह कौन है ? कोई प्रेत है या भूत?
मन में साहस कर वह मशाल के पास गई। उसको उठाकर शव की ओर मुड़ी । मंद प्रकाश में उसने शव की ओर देखा। उसके हाथ से मशाल गिर पड़ी। वह चीख उठी 'यह और कोई नहीं, स्वयं लोभसार था।
जयसेन जब लोभसार के शव को लटकाकर चला था, तब एक सुलगती मशाल रख दी थी, जिससे कि प्रकाश के कारण कोई भी वन्य पशु उस लाश के पास न आए।
कनकावती दो पल स्तंभित होकर खड़ी रही।
१७२ महाबल मलयासुन्दरी
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