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भूमि पर पड़ा है । उसके गले में पड़ा हुआ फंदा उसकी मौत का कारण बन गया
था ।
जयसेन ने अपने सैनिकों से कहा - 'साथियो ! दक्षिण भारत का एक दुर्दान्त और भयंकर डाकू अपने ही भयंकर पापों से मारा गया है। अब इस दुष्ट लोभसार और इसके साथियों को नीचे के वन- प्रदेश में ले जाओ। मैं इसके गुप्त-स्थान की तलाशी लेकर आता हूं ।'
सात सैनिक लोभसार का शव लेकर नीचे की ओर प्रस्थित हुए ।
जयसेन दूसरे सैनिकों को साथ ले पीछे मुड़ा । सेनानायक भी अपने सैनिकों के साथ महाराजा के पास आ गया ।
जयसेन और सेनानायक ने गुप्तद्वार खोलने का पूरा प्रयत्न किया, पर असफल
रहे।
गुफा में जाने का द्वार न मिलने के कारण जयसेन नीचे आ गया और वहां लोभसार की अन्त्येष्टि की व्यवस्था करने का निर्देश दिया ।
जयसेन ने सेदानायक से कहा- 'इस दुष्ट के भय से इस वन- प्रदेश में कोई आने में हिचकता था । इसलिए इस शैतान को एक वृक्ष की डाल पर बांध - कर औंधा लटका दो'""आते-जाते पथिक इसको देखेंगे और धीरे-धीरे यह वनप्रदेश भयमुक्त हो जाएगा ।'
तत्काल सेनानायक ने व्यवस्था की । लोभसार को औंधा लटका दिया और पास में एक जलती मशाल छोड़ दी ।
उसके पश्चात् सभी गोला नदी के तट पर गए, स्नान आदि से निवृत्त होकर, कुछ खा-पीकर अपने- अपने घोड़ों पर गंतव्य की ओर चल पड़े ।
रात हो गई थी ।
कनकावती अत्यन्त आकुल व्याकुल हो रही थी । दिन में उसने सारी गुफा देख ली । अन्यान्य काम-काज भी उसने निपटाए तेरह घोड़ों को उसने दानापानी दिया पर दिन बहुत लम्बा हो गया । मध्याह्न के पश्चात् उसने लोभसार के गुप्त-भंडार को खोला और वहां का सारा सामान देखा । धन प्रचुर था । अलंकारों के ढेर लग रहे थे । कनकावती ने सोचा, जब लोभसार आएगा तो उसको समझाकर एक नगर में जा बसूंगी । उसको चोरी-डकैती छोड़ने के लिए कहूंगी। धन इतना है कि अर्जन की आवश्यकता ही नहीं है । जीवन भर यह समाप्त नहीं होने वाला है, फिर और अधिक धन के लिए इतनी मारामारी क्यों ?
सांझ हो गई ।
Satara के धैर्य का बांध टूट गया। उसने गुप्त-भंडार का द्वार बंद किया और बाहर आयी । बाहर सुनसान था । कहीं कुछ हलचल नहीं थी । अंधकार फैल
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महाबल मलयासन्दरी
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