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देना है। 'शीघ्रता करो।'
एक के बाद एक सारे चोर बाहर आ गए.. 'अंतिम चोर के बाहर निकल जाने पर लोभसार ने पैरों से कुछ किया और वह विशाल शिलाखंड पूर्ववत् हो गया।
जयसेन और उसके साथी चुपचाप बैठे थे। उन्होंने देख लिया था कि पत्थर कैसे बंद हो गया। वे अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।
लोभसार अपने दस साथियों के साथ आगे बढ़ा और मुख्य द्वार की तरफ जाने लगा। जब जयसेन ने यह जान लिया कि लोभसार अपने गुप्त द्वार से इतनी दूर चला गया है कि वह पुनः इसमें नहीं आ सकता, तब उसने पीछे से शंखनाद किया। तत्काल चारों ओर खड़े सशस्त्र सैनिक खड़े हो गए। जयसेन ने ललकारते हुए कहा- 'लोभसार ! आज तू नहीं बच सकता । या तो तू हार मानकर शरणागत हो जा, अन्यथा मृत्यु की तैयारी रख।' ___लोभसार और उसके साथी वहीं खड़े रह गए। चारों ओर सैनिकों का घेरा था। उसे लगा कि अब गुफा में जाना दुष्कर है। साहस के बिना छुटकारा नहीं है । उसने जयसेन को ओर देखकर कहा--'अच्छा ! तू आया है ? जयसेन ! आज मेरा जो कुछ भी हो परन्तु तेरा मस्तक इस अलंबगिरि की माटी चाटेगा।'
इतना कहकर लोभसार अपने साथियों के साथ जयसेन की ओर बढ़ा। इतने में ही चारों ओर से बाणों की वर्षा होने लगी और देखते-देखते लोभसार के पांच साथी धराशायी हो गए। ____ लोभसार नंगी तलवार ले जयसेन की ओर बढ़ा। जयसेन तैयार था। लोभसार ने तलवार ऊंची कर प्रहार किया''जयसेन भी खिलाड़ी था, वह पीछे हट गया और लोभसार की तीखी तलवार से एक सैनिक कट गया।
तलवार के वार चलते रहे। न जयसेन हताहत हुआ और न लोभसार पराजित हुआ।
महाराजा जयसेन रस्सी का फंदा लगाने में निष्णात था। उसने कमर से वह कौशेय रज्जु निकाली और उसे वर्तुलाकार बना, अवसर देख; लोभसार की
ओर फेंकी। वह रज्जु सीधी लोभसार के गले में पड़ी। जयसेन ने रज्जु को खींचा। लोभसार के हाथ से तलवार गिर पड़ी और वह स्वयं धड़ाम से भूमि पर गिर गया। ___उसके गले में फंदा पड़ चुका था। वह खड़ा होकर उस फंदे को निकाले, इतने में ही वहां जयसेन के दस सैनिक आ गए और लोभसार को दबोच लिया।
वह निढाल होकर गिरा पड़ा था। एक सैनिक उसकी गर्दन को काटने के लिए आगे बढ़ा । जयसेन ने उसे रोक लिया । जयसेन लोभसार के पास आ गया। उसने देखा, लोभसार निष्प्राण होकर
महाबल मलयासुन्दरी १६६
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