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गई‘"उसकी आंखों में मदिरा की मादकता छलकने लगी. वह अचेत हो, उससे पूर्व ही गोष्ठी सम्पन्न कर दी गई। क्योंकि लोभसार अब अपनी कामवासना को रोकने में असमर्थ था ।
रानी का हाथ पकड़कर लोभसार गुफा के दूसरे खंड में गया। रानी के पैर लड़खड़ा रहे थे."मदिरा का नशा कुछ मंद हो इसलिए लोभसार ने रानी को एक औषधि खिलायी ।
औषधि खाकर रानी ने जलपान किया होने लगा कि वह स्वर्ग की सुन्दरी है
कुछ क्षणों के पश्चात् उसे अनुभव उसका तीव्र नशा मंद हो चुका था । लोभसार ने रानी कनकावती को भुजपाश में जकड़ लिया और " यौवन उदयंगत होता हो या अस्तंगत, किन्तु हृदय का विकार जब उन्मत्त होता है तब आदमी अंधा हो जाता है ।
महाराजा वीरधवल की रानी एक कुख्यात और दुर्दान्त चोर के भुजपाश में बंधेगी, ऐसी कल्पना कौन कैसे कर सकता है ?
कहां चन्द्रावती नगरी का वैभव ! कहां राजा की रानी होने का गौरव ? और कहां आज की स्थिति !
महाचोर लोभसार और रानी कनकावती के वासना का युद्ध तीव्र से तीव्रतर हो रहा था ।
इधर मलया और महाबल सुहाग के प्रथम मिलन में शांत और सहज रूप में बातचीत कर रहे थे ।
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महाबल मलयासुन्दरी १६५.
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