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'प्रिये ! आज इस आनन्द की यामिनी के बीतते ही मुझे एक नूतन विपत्ति से जूझना होगा।
'हैं, नूतन विपत्ति ! 'मलया ने चौंककर कहा ।
'हां', महाबल ने महाराजा द्वारा कथित सारा वृत्तान्त मलया को कह सुनाया।
मलया का प्रसन्न वदन उदास हो गया । उसके चेहरे पर चिन्ता की रेखा खचित हो गई। ___ महाबल बोला-'मलया ! तू चिन्ता मत कर। क्या तुझे विश्वास नहीं है कि जो व्यक्ति महान् व्रजसार धनुष्य को उठा सकता है, वह इन राजकुमारों द्वारा प्रस्तुत विपत्ति को नहीं झेल सकेगा?' ____ 'आपकी शक्ति और साहस में मुझे तनिक भी शंका नहीं है, किन्तु रक्तपात न हो तो अच्छा है।'
जीवन की पहली यामिनी। मिलन की कविता पास में बैठी है। फिर भी मलया और महाबल उद्दाम यौवन के आवेश के पराधीन न होते हुए दो मित्रों की तरह वार्तालाप कर रहे हैं। ___उस समय महाचोर लोभसार के गुफा-खंड का दृश्य इससे अत्यन्त विपरीत था।
लोभसार आज अत्यन्त प्रसन्न था। उसने अपने साथियों को निमंत्रण दिया था। महफिल में मदिरापान का दौर चल रहा था और चोर के दो साथी कामोत्तेजक गीत गा रहे थे। __रानी कनकावती पूरा शृंगार कर लोभसार के पास बैठी थी।
लोभसार इस अनोखे रत्न की उपलब्धि पर मन-ही-मन उछल रहा था और बार-बार रानी के शरीर का स्पर्श कर अपना मनोभाव जता रहा था।
रानी कनकावती अपने हाथों से लोभसार को बार-बार मदिरापान करा रही थी। __ मदिरा मनुष्य के मन को व्यग्र बनाती है, काम-ज्वाला को प्रज्वलित करती है और विवेक को भ्रष्ट करती है।
रानी प्रारम्भ से ही छिप-छिपकर मदिरापान करने की आदी हो चुकी थी। महाराजा वीरधवल जैन परम्परा के उपासक थे। वे मदिरापान को बुरा मानते थे। उनके राजप्रासाद में कोई भी व्यक्ति मदिरापायी नहीं था। परन्तु दासी सोमा के माध्यम से रानी कनकावती गुप्त रूप से मदिरा मंगाती और उसका पान कर लेती थी।
इतना होने पर भी उसने आज जितनी मदिरा कभी नहीं पी थी। रात का दूसरा प्रहर पूरा हो, उससे पूर्व ही रानी मदिरा के नशे में धुत्त हो
१६४ महाबल मलयासुन्दरी
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