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पुत्री को आशीर्वाद दे महाराजा और चंपकमाला दोनों अपने महलों की ओर चले गए।
मलया अपने शृंगारित शयनकक्ष में गई। वहां उसकी सखी सागरिका ने कान में कहा--'प्रिय मलया ! अब तुझे इस सुन्दर एकान्त में रहना होगा और युवराज महाबल के हृदय-सिंहासन पर अपना स्थान बनाना होगा किन्तु जल्दी मत।'
तत्काल मलया बोली-'सागरिका ! तुझे यहीं मेरे पास रहना होगा... मेरा हृदय कांप रहा है।'
'हृदय नहीं कांपता, प्रियमिलन की चाह तूफान मचा रही है'-कहती हुई सागरिका ने मलया के गाल पर धीरे से अंगुली का प्रहार किया।
और महाबल खंड में आया । सागरिका तथा अन्य सखियों ने उसका फूलों से वर्धापन किया और वाचाल सागरिका बोल उठी-'युवराज ! पुष्प अत्यन्त कोमल होता है।'
'आभार ! आप विश्वास रखें कि जीवन की कविता जैसा कोमल फूल जीवन को संपति होती है ।' महाबल ने कहा।
सभी सखियां हंसती हुई खंड से बाहर निकल गईं और जाते-जाते सागरिका ने शयनखंड का द्वार बंद कर दिया।
मलया और महाबल शयनकक्ष में अकेले थे। दोनों का मनोवांछित कार्य सफल हो चुका था। आज पिया-मिलन की प्रथम रात्रि थी।
दोनों के मन उमंग से उछल रहे थे। दोनों एक आसन पर बैठे और बीती बात में रस लेते हुए दोनों एकाकार हो गए। दोनों का संस्तव बहुत पुराना नहीं 'था, पर था बहुत ही गाढ़ और पवित्र ।
'मलया ! आज की खुशी का पार नहीं है। मेरा तन-मन आनन्द के महासागर में उन्मज्जन-निमज्जन कर रहा है। इन दो-चार दिनों में क्या-क्या नहीं हुआ? हम दोनों ने क्या नहीं सहा? पर पुण्यों का संचय भारी था और आज हम इस अवस्था में हैं। मलया ! मुझे नवकार महामंत्र के प्रभाव का प्रत्यक्षीकरण हुआ। एक बार नहीं; अनेक बार ।'
"प्रिय ! मैं भी उसी महामंत्र के प्रभाव से आज इस स्थिति में पहुंची हूं। जब मैंने अंधकूप में छलांग लगाई थी, तब उसी का जाप चल रहा था और जब तक मैं सचेत रही, एक क्षण के लिए भी उसे विस्मृत नहीं किया। मैं प्रारम्भ से ही इसका जाप करती रही हूं और मैंने सुना है मुनियों से कि महामंत्र सर्वतुष्टि देने वाला है । आत्मबल और मनोबल को बढ़ाने वाला है। इसका प्रत्यक्ष अनुभव आपको भी हुआ और मुझे भी हुआ।'
महाबल मलयासुन्दरी १६३
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