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३१. विपत्ति के बादल
राजकुमारी मलयासुंदरी और युवराज महाबल की लग्न-विधि ठीक गोधूलिका के समय प्रारम्भ हो गई।
इस प्रसंग पर स्वयंवर में भाग लेने के लिए आए हुए राजकुमार वहां उपस्थित थे।
जिस समय लग्न की कुछेक शेष विधियां चल रही थीं, उस समय मलयासुंदरी के रूप पर मुग्ध बना हुआ एक राजकुमार अपने पांच-सात साथी राजकुमारों के साथ एक भयानक चिन्तन कर रहा था। उस चिन्तन का सारसंक्षेप यह था--'महाबल अकेला आया है । इसके साथ न कोई मंत्री है; न सामंत है और न सेना है। स्वयंवर में भाग लेने के लिए आने वाला राजकुमार इस प्रकार नहीं आ सकता। हमें महाराजा वीरधवल को यह चेतावनी देनी चाहिए कि यदि कल सायंकाल तक युवराज महाबल के मंत्री या सामंत यहां नहीं पहुंचते हैं तो हमें मानना चाहिए कि यह असली युवराज नहीं है, कोई उठाऊ राहगीर है। फिर रात्रि में महाबल की हत्या कर हमें मलयासुंदरी का अपहरण कर लेना चाहिए।'
जब ऐसी भयंकर विचारणा हो रही थी, उस समय विवाह-मंडप में मंत्रोच्चारण की ध्वनि चारों ओर गूंज रही थी।
निमित्तज्ञ की खोज के लिए गए हुए राजपुरुष निराश लौटे। वे इतना मात्र बता सके कि स्वयंवर-मंडप में स्तंभ की स्थापना कर निमित्त महाराज एक तंबू में गए थे। उस तंबू से उन्हें बाहर निकलते किसी ने नहीं देखा।
इतने में चंपकमाला को कुछ स्मृति हो आयी। उसने महाराजा वीरधवल से कहा--'महाराज ! मुझे याद है कि निमित्तिज्ञ को जब मैंने पूछा कि मलया का विवाह किसके साथ होगा, तब उन्होंने एक पर्चे में मलया के भावी पति का नाम लिखकर देते हुए कहा था-मलया का विवाह होने के पश्चात् इसे खोलकर देख लेना। आप उस पत्र को मंगाएं। संभव है निमित्तज्ञ ने अपना नाम-पता उसमें लिखा हो।'
महाबल मलयासुन्दरी १५६
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