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वर्चस्वी स्वामी...'
राजा ने कन्या का मस्तक चूमा और महामंत्रीश्वर से कहा- 'महामंत्री ! निमित्तज्ञ महाराज कहां हैं, उन्हें ढूंढ़ना चाहिए। विवाह की तैयारी करो। लग्न गोधूलिका के समय में सम्पन्न हो जाना चाहिए।'
महामंत्री ने कहा-'महाराज ! मैंने निमित्तज्ञ को ढूंढ़ने के लिए व्यक्तियों को इधर-उधर भेजा है। वे उनकी खोज में गए हैं।' ___महाराजा वीरधवल स्वयंवर में भाग लेने के लिए आए हुए राजकुमारों के आसन पर गए। सबको तिलक किया, फूल-मालाएं पहनायीं, एक-एक बेशकीमती पोशाक उन्हें भेंट की और वापसी यात्रा के लिए मंगलकामना प्रस्तुत की।
महादेवी चंपकमाला राजकुमारी के साथ ही खड़ी थी, क्योंकि लग्न की पूरी क्रिया सम्पन्न हुए बिना राजकुमारी को राजप्रासाद में नहीं ले जाया जा सकता था । उस समय का यह नियम था।
महाबल को एक चिन्ता सता रही थी कि यदि लक्ष्मीपुंज हार माता को यथासमय नहीं मिलेगा तो संभव है अनर्थ हो जाए। उसने माता-पिता को संदेश भेज दिया था। पर वे स्वयंवर में नहीं आए। महाबल चिन्तातुर हो उठा। वह वहां से शीघ्र जाना चाहता था, परन्तु प्रातःकाल से पूर्व प्रस्थान करना असंभव था, क्योंकि विवाह की सारी विधियां सम्पन्न होने में विलम्ब था।
- मलया ने मां से पूछा-'मां! स्वयंवर के समय मैंने चारों ओर देखा परन्तु अपरमाता मुझे कहीं नहीं दिखीं । क्या वे कहीं गई हैं ?'
मलया! तेरी अपरमाता के कारण ही तो यह सब षड्यन्त्र हुआ था 'अब तेरे पिताश्री उसका नाम सुनना भी नहीं चाहते "संभव है वह पीहर चली गई हो।' ___ मां-पुत्री का जब मिलन होता है तब बातों का अन्त ही नहीं आता। एक बात से दूसरी बात निकलती जाती है।
मलया की लग्नविधि के लिए तैयारी होने लगी। उसके मर्दन, स्नान, अभ्यंगन आदि की सामग्री एकत्रित थी ही।
अनेक कर्मकर इस कार्य में लगे। गोधूलिका का पावन समय। मलया और महाबल का पाणिग्रहण ।
१५८ महाबल मलयासुन्दरी
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