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३०. शक्ति-परीक्षण
दक्षिण भारत की श्रेष्ठ सुन्दरी मलया को प्राप्त करने के लिए देश-विदेश से समागत राजकुमार निराश होकर स्वयंवर-मंडप में बैठ गए। सारा मंडप निराशा की बदली से ढंक गया। कोई भी राजकुमार वज्रसार धनुष्य को उठा नहीं पाया। 'केवल चार राजाओं ने उसे उठाया था, किन्तु वे उस पर बाण चढ़ा पाने में समर्थ नहीं हुए।
स्वयंवर में आए हुए राजकुमार ही निराश नहीं थे, मलया के माता-पिता और राज्य के मंत्रीगण भी निराशा में डूब चुके थे।
महाराज वीरधवल चारों ओर दृष्टिपात कर निमितज्ञ को ढूंढ़ रहे थे." किन्तु निमित्तज्ञ कहीं नहीं दिख रहा था।
महादेवी और महामंत्री भी इधर-उधर देख रहे थे।
महामंत्री ने चारों ओर आदमी भेजे, पर वे सब निराश होकर लौट आए । निमित्तज्ञ की प्रतीक्षा सबको थी। सब जानते थे कि जब निमित्तज्ञ की सारी बातें सच हो चुकी हैं तो एक यह बात क्यों नहीं सच होगी?
वातावरण अत्यन्त गंभीर हो गया था।
इस गंभीर वातावरण के मध्य एक सुन्दर नवयुवक हाथ में वीणा लेकर स्वयंवर-मंडप में आ पहुंचा। सब की दृष्टि उस पर थी। वह सीधा उस वेदिका के पास पहुंचा जहां स्तम्भ स्थापित किया गया था। वह बिना कुछ कहे वीणा बजाने लग गया।
इस उदास वातावरण में वीणा के मधुर नाद के प्रति सब आकृष्ट हो गए। महाराज वीरधवल, महारानी चंपकमाला और महामंत्री सुबुद्धि-तीनों अपलक उस अपरिचित सुन्दर और स्वस्थ युवक की ओर देख रहे थे।।
यह और कोई नहीं, किन्तु युवराज महाबल था और वीणावादन के द्वारा मलयासुन्दरी को सावधान कर रहा था।
सभी उपस्थित राजकुमारों ने तो यही सोचा था कि गंभीर वातावरण को हल्का बनाने के लिए वीणावादन का उपक्रम किया गया है।
महाबल मलयासुन्दरी १५५
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