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________________ पहले अनेक व्यक्तियों का जीवन-मरण उसके हाथों में था। उसके इशारे पर अनेक कार्य होते थे। और आज एक कुख्यात चोर के बाहुपाश में बंधकर सुख और आनंद का अनुभव कर रही है। किन्तु आदमी जब दुष्ट वृत्तियों के अधीन होता है तब उसका विवेक नष्ट हो जाता है। - पर्वतीय गुफा के पास पहुंचते ही रानी ने देखा कि दस-बीस व्यक्ति अपने सरदार का अभिनंदन कर रहे हैं। सरदार ने अपने साथियों से कहा-'साथियो! जिस वस्तु का अभाव मेरे हृदय को कचोट रहा था, वह आज मुझे प्राप्त हो गयी है 'आज से यह देवी तुम सबकी रानी है. इसकी आज्ञा का उल्लंघन करने वाले की मौत मेरे हाथ से होगी।' सबने हर्षध्वनि के साथ रानी का सत्कार किया। स्नान आदि से निवृत्त होकर रानी ने लोभसार द्वारा प्रदत्त वस्त्र पहने और अलंकारों से सज्जित होकर बैठ गयी। रानी ने लोभसार के साथ-साथ भोजन किया। फिर लोभसार कनकावती को अपने गुप्तखंड के पास ले गया और बोला'इस खंड में मेरी अपार संपत्ति है।''आज तक किसी ने इसे नहीं देखा है। आज तू इसे देख 'यह सारी संपत्ति तेरे चरणों की रज बन रही है'-कहते हुए लोभसार ने उस खंड का द्वार खोला। दोनों भीतर गए। अनेक प्रकार के अलंकार और स्वर्ण-मुद्राओं की थैलियां देखकर रानी हर्ष से उछल पड़ी। ___ उसने लोभसार की छाती पर अपना सिर टिकाकर कहा-'इस संपत्ति की मुझे कोई आवश्यकता नहीं है। आप मुझे प्राप्त हुए हैं, यह मेरी महान् संपत्ति लोभसार ने रानी को बाहुपाश में जकड़ लिया। मोहान्ध मनुष्य नरक को भी स्वर्ग ही मानता है। १५४ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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