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________________ की कोमल काया अकड़ गई थी। उसने सरदार की ओर देखा । स्वस्थ, सुन्दर और बलिष्ठ व्यक्ति सामने खड़ा था। रानी ने मदु स्वरों में कहा-'आप कौन हैं ?' "सुन्दरी ! घबराओ मत “जिस दुष्ट ने तेरी यह गति की है उसका नाम तू मुझे बता''उसे मैं पाताल से भी खोज लूंगा और तेरे चरणों में ला पटकूँगा। तेरे जैसी सुन्दर और राजा की रानी जैसी कोमल नारी की यह दशा करने वाला कौन नराधम है ?" रानी ने सरदार के चमकते नयनों की ओर देखा. 'उठने का प्रयत्न किया, पर अकड़न के कारण उठ नहीं सकी। सरदार इस कठिनाई को भांप गया । उसने धीमे से रानी को पेटी से उठाया और बाहर रख दिया। रानी ने कहा-'मेरे जीवनदाता का परिचय मुझे नहीं मिलेगा?' 'अवश्य मिलेगा 'मैं इस प्रदेश का महाचोर लोभसार हूं..'मेरे नाममात्र से आसपास के राजा कांप उठते हैं "तू अब निर्भय है "तुझे इस अवस्था में लाने वाला पापी कौन है?' 'एक अनजान व्यक्ति ने मुझे अपने मायाजाल में फंसा डाला' कहकर उसने अपने अलंकारों की पोटली की ओर देखा । अभी तक उसको खोलने का विचार भी रानी के मन में नहीं उभरा था। "उस दुष्ट का नाम तू जानती है?' 'राजगृह के सार्थवाह का पुत्र सुन्दरसेन...' "राजगृह ! यह तो पूर्व भारत में है।' 'उसी ने मुझे इस पेटी में बंद कर नदी में प्रवाहित कर दिया।' 'उसका कारण क्या था ? 'उसके मन में क्या था, मैं कैसे बताऊं। मैं पति से दुःखी होकर घर से निकली थी और उसने मुझे अपने जाल में फंसा डाला। उसने मुझे राजगृह ले जाने की बात कही. "परन्तु अब आप मेरे पर एक कृपा करें... 'बोल'.." 'मुझे किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दें 'मैं कहां आ गई हूं, इसका भी मुझे भान नहीं है। 'मेरे पास कुछ काल तक जीवन-निर्वाह करने योग्य धन है'कहती हुई रानी ने पोटली खोली। पोटली को खोलते ही वह चिल्ला उठी-'अरे ! ओह !...' 'क्या हुआ, सुन्दरी?' 'उस मधुरभाषी परदेशी ने मेरी बहुमूल्य वस्तु चुरा ली है। मेरा एक बहुत मूल्यवान् हार इस पोटली में था।' १५२ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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