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________________ .. तैरना जानते थे । वे तैरकर नाविकों के साथ किनारे पर आए । पर उनकी आशा पर पानी फिर चुका था । दिन का पहला प्रहर बीत गया । पेटी पृथ्वीस्थानपुर नगर के पास पहुंच रही थी। वह नगर अब केवल चार ata दूर था । यदि वह पेटी नगर के पास वाले किनारे पर पहुंचती तो संभव है कि किसी-न-किसी मानव की दृष्टि उस पर पड़ती और वह उसे खींच लेता । किन्तु रानी के भाग्य में कुछ और ही लिखा था । रानी को यह कल्पना ही नहीं थी कि इसी समय चंद्रावती नगरी के स्वयंवर मंडप में वज्रसार धनुष्य को उठने के लिए अनेक देश से समागत राजकुमार अपने-अपने पराक्रम का परीक्षण दे रहे हैं । और उसके मन बसने वाला युवक सुन्दरसेन पुरुष नहीं, किन्तु उसकी सौत की पुत्री मलया है और वह अभी एक स्तंभ के भीतर छिपी है । नदी के तीव्र प्रवाह में तीव्र गति से बहने वाली पेटी एक स्थान पर आकर मुड़ी और कुछ दूर जाकर अटक गई। 'क्या हुआ ?' यदि पेटी खुली होती तो रानी समझ लेती कि पेटी धनंजय यक्ष के मंदिर की सोपान श्रेणी, जो नदी के पानी का स्पर्श कर रही थी, में अटक गई है ! और वह यह भी जान लेती कि उस सोपान श्रेणी पर तीन भीमकाय पुरुष खड़े हैं और वे पेटी की ओर देख रहे हैं। पर वह क्या करे ? पेटी बंद थी । भीतर अंधकार के सिवाय कुछ था ही नहीं । तीन पुरुषों में से एक पुरुष, जो सरदार जैसा लग रहा था, बोला -- ' जल्दी करो, पेटी को खींच लो अन्यथा प्रवाह में बह जाएगी ।' उसके दोनों साथी पानी में उतरे और पेटी को उठाकर सोपान श्रेणी पर रख दिया । सरदार ने जोर से कहा - 'ऊपर ले आओ ।' तत्काल दोनों ने पेटी उठा ली। सोपान श्रेणी से चढ़कर दोनों व्यक्ति पेटी को मंदिर के विशाल प्रांगण में ले आए । सरदार पेटी के पास आया और ताले को झटका दिया । ताला खुला था, वह नीचे आ गिरा । सरदार ने पेटी का ढक्कन खोला । रानी कनकावती की देह को पवन का स्पर्श हुआ वह अंधकार से पूरे प्रकाश में आ गई। और सरदार चौंका - अरे ! इतनी सुन्दर नारी इस पेटी में ? कौन होगी ? कहां से आयी होगी ? रानी आंखों को मसलकर देखने का प्रत्यन कर रही थी कि सरदार ने कहा - 'सुन्दरी ! तेरी ऐसी दशा किसने की ?" एक पूरी रात और दिन के एक प्रहर तक पेटी में रहने के कारण कोमलांगी महाबल मलयासुन्दरी १५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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