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२. कला का उपासक
दिवस का प्रथम प्रहर पूरा हो चुका था ।
राजदरबार जुड़ गया था। चंद्रावती नगरी का प्रतापी राजा अपनी दोनों रानियों, पुत्र-पुत्रियों के साथ राजदरबार में बैठा था । सभी मन्त्री तथा सामंत अपने-अपने स्थान पर बैठे थे । आज इस सभा की आयोजना इसलिए की थी कि एक विशिष्ट शक्ति सम्पन्न चित्रकार का परिचय सबको कराना था । नागरिक भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे ।
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राजसभा का दैनिक कार्य पूरा होने के पश्चात् महामन्त्री ने खड़े होकर कहा – 'बंगदेश के सुप्रसिद्ध चित्रकार आर्य सुशर्मा आज राजसभा में आए हैं । ये बंगदेश के राजाधिराज का आदेश प्राप्त कर भारत दर्शन करने के लिए निकले
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हैं । ये महान कलाकार हैं । इनकी शक्ति अद्भुत है। एक बार देखे हुए दृश्य या व्यक्ति का चित्र ये आंखों पर पट्टी बांधकर चित्रपट पर उतार देते हैं । कला-साधना इतनी विशिष्ट है कि ये एक चावल के दाने पर भगवान के समवसरण की रचना विविध रंगों में चित्रित कर सकते हैं ।'
आर्य सुशर्मा ने सबको प्रणाम कर कहा - 'महाराज के मन में कला के प्रति जो उत्साह है, उसे देखकर मेरा मन अत्यन्त प्रसन्न हुआ है । मैं अभी आप सबके समक्ष अपनी चित्रकला का एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता हूं । महाराज जिस व्यक्ति या दृश्य का चित्रांकन देखना चाहेंगे, मैं उस व्यक्ति या दृश्य की झलक मात्र लेकर फिर आंखों पर पट्टी बांध आपको चित्रांकन कर दिखाऊंगा ।'
महाराज वीरधवल ने सभा की ओर देखा । उन्होंने राजपुरोहित को खड़े होने का संकेत दिया और चित्रकार से कहा -- 'आर्य सुशर्मा ! आप हमारे राजपुरोहित को देख लें और तत्काल उनका चित्रांकन कर दिखाएं ।'
चित्रकार ने राजपुरोहित को एक ओर खड़ा कर उसके स्वरूप का मन-हीमन अवगाहन किया। थोड़े ही क्षण पश्चात् चित्रकार बोला- 'महाराज ! मेरा निरीक्षण पूरा हो गया है । अब मैं चित्रपट्टक तथा अन्य सामग्री एकत्रित करता हूं। फिर आप मेरी आंखों पर पट्टी बांधने की आज्ञा देना ।'
महाबल मलयासुन्दरी ७
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