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.. युवराज ने निकट आकर देखा। तीन गुटिकाएं रत्न की भांति चमक रही थीं।
'यह क्या है, यह मैंने तुझे पहले नहीं बताया। बताता भी कैसे ? क्योंकि जब तक कार्य सिद्ध न हो, तब तक उसकी चर्चा करना व्यर्थ है । दिव्य विज्ञान में पारद को महान् द्रव्य माना जाता है । पारद का सत्व निकालना बहुत ही कठिन कार्य है. पारद एक ऐसा द्रव्य है, जिसकी चंचलता को वश में करना सहज नहीं होता' 'पारद में दिव्य परमाणुओं का सघन योग है 'परमाणुवाद के पुरस्कर्ता इस तथ्य को जानते हैं । इन गुटिकाओं में मैंने पारद के इन परमाणुओं को स्थिर और एकत्रित किया है। इन गुटिकाओं का प्रभाव विचित्र है क्या तूने कभी रूपपरावर्तिनी विद्या के विषय में सुना है ?'
'हां, सुना है कि इस विद्या के स्मरण से मनुष्य अपनी इच्छानुसार रूप धारण कर सकता है" ___फिर भी यह मंत्र-विद्या है''प्रत्येक मनुष्य इसका उपयोग नहीं कर सकता। ___ 'जो मंत्रविद् होता है या जिसने रूपपरावर्तिनी विद्या को साधा है, वही व्यक्ति अपने रूप को बदल सकता है। किन्तु इन गुटिकाओं की अपनी विशेषता है । इनमें कोई मंत्रशक्ति नहीं है. इनमें केवल दिव्य विज्ञान की शक्तियां ही केन्द्रित की गई हैं । इस गुटिका को मुंह में रखकर मनुष्य किसी भी देखे गए रूप में परिवर्तित हो सकता है । गुटिका को मुंह से बाहर निकालते ही वह मूल रूप में आ जाता है। महाबल ! एक कार्य अब शेष है। 'तीन-चार दिनों में वह भी पूरा हो जाएगा। निश्चित ही तूने मेरे पर बहुत बड़ा उपकार किया है।'
महाबल ने हाथ जोड़कर कहा- आचार्य देव ! मैंने अपना कर्तव्य निभाया है। आप-जैसे सिद्ध पुरुष के समागम से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है।'
आचार्य ने महाबल की पीठ थपथपायी। फिर दूध का एक घड़ा उस कड़ाह में डाला ।
थोड़े समय पश्चात् उस कड़ाह में पड़ी तीनों गुटिकाओं को लेकर आचार्य पद्मसागर महाबल के साथ कुटीर में आ गए।
६ महाबल मलयासुन्दरी
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