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और तेज गति से महाबल की ओर लपका।
महाबल ने सोचा, यदि यह प्राणी इस ओर आ जाएगा तो क्षण भर में हस्तगत होने वाली सिद्धि विनष्ट हो जाएगी। उसने तत्काल दूसरा बाण उस ओर छोड़ा और फिर तीसरा और चौथा।
किन्तु क्रूर अट्टहास करते हुए उस वनमानव ने सारे बाण हाथों से पकड़, तोड़कर फेंक दिए। ____ महाबल ने धैर्य नहीं छोड़ा' "उसने एक बाण अभिमंत्रित कर छोड़ा। वह बाण अग्नि की तीव्र ज्वालाओं को बिखेरता हुआ तीव्र गति से आगे जा रहा था।
- महाबल की दृष्टि वतमानव पर टिकी हुई थी। वनमानव ने उस अग्निमय बाण को पकड़ने का निश्चय किया किन्तु बाण का स्पर्श करते ही वह वनमानव तत्काल अदृश्य हो गया। ___महाबल ने सोचा-यह कोई व्यन्तर भय उत्पन्न करने के लिए यहां आ रहा था, किन्तु लगता है कि अभिमंत्रित बाण के स्पर्श से अदृश्य हो गया है।
महाबल निश्चित हुआ'उसने आचार्य की ओर देखा ।
आचार्य एक योगी की भांति लोहपात्र में दृष्टि डाले बैठे थे. विज्ञान की एक महान् सिद्धि हस्तगत होने वाली थी किनारे लगी नाव डूब न जाए, यह विचार उन्हें पल-पल जागरूक रख रहा था। ___ इतने में ही एक भयंकर चीख सुनाई दी। महाबल ने दक्षिण दिशा की
ओर देखा । एक पर्वताकार हाथी बाड़ को फांदकर अन्दर आ चुका था। उसकी सूंड में एक पूरा वृक्ष था। महाबल ने सोचा, यह क्या ? इस वन में मैंने कभी हाथी नहीं देखा, अभी-अभी यह कहां से आ गया ? क्या यह आचार्य की सिद्धि को नष्ट कर देगा ? क्या सूंड में पकड़े वृक्ष को इस ओर फेंकेगा ?' ..
नहीं''नहीं...
तत्काल महाबल ने एक बाण अभिमंत्रित कर उस ओर फेंका। वह बाण हाथी के गंडस्थल पर लगा' 'अरे, यह क्या ? गजराज कहां अदृश्य हो गया ? क्या यह भी कोई भयंकर व्यन्तर था ?
यह प्रश्न समाहित हो उससे पूर्व ही आचार्य बोल पड़े- 'महाबल ! दस वर्षों का यह श्रम आज तेरे सहयोग से सफल हुआ है। 'वत्स ! संसार की एक महान् वस्तु का निर्माण हो चुका है।'
महाबल ने आचार्य की ओर देखा। आचार्य भट्ठी की अग्नि बुझा रहे थे। वहां एक छोटी-सी मशाल जल रही थी। महाबल बोला---'आपकी सेवा का सुअवसर पाकर मैं धन्य हुआ हूं।' आचार्य पद्मसागर बोले--'युवराज ! निकट आकर इस कड़ाहे में देख ।'
महाबल मलयासुन्दरी ५
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