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________________ २६. लोभसार स्वयंवर का परिणाम प्रकट हो, उससे पूर्व हम रानी कनकावती की पेटी की सुध-बुध लें। वर्षाकाल प्रारंभ हो चुका था। गहरी वर्षा के कारण गोला नदी का प्रवाह तीव्र हो चुका था। वह बंद पेटी वेगवान् प्रवाह में यात्रा कर रही थी। रात का समय था। 'पेटी में अंधकार था । बाहर से ताला लगा हुआ था। रानी कनकावती को यह भान हो चुका था कि जिस पेटी में वह छिपकर बैठी है, वह पेटी नदी के प्रवाह में बह रही है। सुन्दरसेन ने राजपुरुषों से बचाने के लिए ही यह कार्य किया है। ऐसा रानी विश्वासपूर्वक मानती थी। किन्तु उसके मन में एक प्रश्न अकुलाहट पैदा कर रहा था कि इस पेटी के साथ सुन्दरसेन होगा या नहीं? यदि वह नहीं होगा तो? "नहीं नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। राजा के सिपाहियों से मुझे बचाने के लिए उसने उत्तम मार्ग ढूंढा है। संभव है वह भी पेटी के साथ ही तैरता हुआ आ रहा होगा 'आह ! आज की आनंद की रात्रि में कैसा अंतराय आ गया ? कितना सुन्दर युवक ! अवस्था में छोटा होने पर भी कितना स्वस्थ और कितना रसिक ! किन्तु यह पेटी कहीं अटक गई तो?-रानी कनकावती सोच रही थी। पेटी वेग से बह रही थी। उसने सोचा-पेटी के साथ अवश्य ही सुन्दरसेन होगा। यह सोचकर रानी ने दो-चार बार पेटी के ढक्कन पर हाथ मारा। किन्तु ढक्कन नहीं उघड़ा। सुन्दरसेन को कैसे बताऊं कि मैं पेटी के भीतर बैठी-बैठी व्याकुल हो रही हूं । मेरी अकुलाहट बढ़ रही है। मुझे इस पेटी में कितने समय तक बैठे रहना होगा। समय इतना लंबा और उमस पैदा करने वाला हो रहा था कि रानी महाबल मलयासुन्दरी १४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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