________________
इतने में राजपुरोहित ने आकर कहा-'महाराज ! अब विलंब नहीं होना चाहिए। सभी राजकन्या की प्रतीक्षा कर रहे हैं।'
महामंत्री ने कहा-'तुम जाओ, तैयारी करो, मैं घोषणा करता हूं।' महाराजा ने कहा-'बहुत बड़ी विपत्ति में फंस गए।'
महामंत्री ने खड़े होकर एलान किया-'चंपावती नगरी के महाराजा वीरधवल के निमंत्रण को सम्मान देखकर आप सब यहां आए हैं। मैं महाराजा की ओर से आपका सत्कार करता हूं। आप जानते हैं कि इस पीठिका पर पड़े विराट धनुष्य पर बाण चढ़ाकर जो व्यक्ति स्तंभ पर बाण छोड़ेगा, राजकुमारी मलयासुन्दरी उसके गले में वरमाला डालेगी। आप सब मलयासुन्दरी को देखने के लिए उतावले हो रहे हैं । वह इसी मंडप में है । जिस राजकुमार की भुजाओं में बल होगा, जो इस वज्रसार धनुष्य को उठाकर बाण चढ़ाएगा, तत्काल मलयासुन्दरी आगे आकर उसके गले में वरमाला पहनाएगी। उसी समय वह प्रकट होगी। राजकन्या का पहले प्रकट न होने का यह एक रहस्य भी है कि उसका सौन्दर्य इतना लुभावना और तेजस्वी है कि सारे बल उसके सामने नगण्य हो जाते हैं। अतः राजकुमारों में वैसी स्थिति न आए, इसलिए राजकुमारी अभी अदृश्य है।'
सभी ने सुना । 'धन्य-धन्य' के शब्द उच्चरित होने लगे।
बाजे बजने लगे। शंखनाद होने लगा और बल-परीक्षण का कार्य प्रारंभ हा गया।
एक राजकुमार ने कहा- 'मैं अभी इस पुराने धनुष्य को उठाकर बाण चढ़ाता हूं और स्वयंवर की रस्म को यहीं संपन्न कर देता हूं।' वह आगे बढ़ा। धनुष्य को पकड़ा, पर वह उसे उठा नहीं पाया। वह धनुष्य बहुत भारी था। उसको उठाने वाले पांच-सात मनुष्य भी हांफ जाते । वह राजकुमार नीचा मुंह कर चला गया।
और भी राजकुमार आए। किसी को सफलता नहीं मिली। सब निराश लौट गए।
सारी सभा में सन्नाटा छा गया। सभी का मन एक ही प्रश्न से आन्दोलित हो रहा था कि इस विराट धनुष्य को उठाएगा कौन? निराशा का बादल स्वयंवरमंडप में छा गया।
१४८ महाबल मलयासुन्दरी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org