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________________ नहीं। वह वहां से चला। सबसे पहले वह भट्टारिका देवी के मन्दिर में गया और वहां बिखरी पडी सारी वस्तुएं-रंग आदि लेकर उसने गोला नदी में डाल दी। फिर वह समय की प्रतीक्षा करता हुआ मन्दिर की एक चोटी पर बैठकर विश्राम करने लगा। रात्रि का तीसरा प्रहर बीत गया । महाबल ने सोचा, नगर में चोरी करने गये चारों चोर अब आने वाले ही हैं। उनके आगमन से पूर्व मुझे यहां से चला जाना है। एकाध घटिका के पश्चात् चारों चोर वहां आ पहुंचे। अपनी पेटी और साथी को न पाकर वे महाबल के पास आये । मुख्य चोर ने पूछा-'अरे, हमारा एक साथी और एक बड़ी पेटी यहां पड़ी थी। उनका क्या हुआ ?' 'आप सब कौन हैं ? यहां पेटी की रक्षा के लिए बैठा हुआ आदमी आपका साथी था ?' 'हां"।' 'तब तो वह बड़ी मुश्किल से पेटी को सिर पर रखकर नदी के किनारे गया है। उसने मुझे सहयोग के लिए कहा था। हम साथ-साथ गये और पेटी को नदी में बहा दिया। वह उस पेटी पर बैठ गया था।' महाबल ने बताया। मुख्य चोर ने पैर पटकते हुए कहा-'विश्वासघात ! अरे भाई ! उसको गये कितना समय हुआ होगा ?' ‘रात्रि के दूसरे प्रहर के बाद गया है।' तत्काल चोरों के सरदार ने अपने साथियों से कहा---'शीघ्र चलो, हम उसका पीछा करेंगे।' 'सरदार ! नदी का प्रवाह इतना तेज है कि न जाने वह पेटी पर बैठा-बैठा कितनी दूर चला गया होगा।' 'अरे ! वह जाएगा कहां? अभी हम एक नौका में बैठकर उसका पीछा करते हैं।' कहते हुए सरदार ने महाबल की ओर देखा और कहा-'मैं आपका आभारी हूं, आपने हमें सारी जानकारी दी।' 'आपका परिचय ?' महाबल ने पूछा। 'यदि तुम्हारे पास धन या अलंकार होते तो हमारा परिचय स्वयं प्राप्त हो जाता'-कहता हुआ चोरों का सरदार अपने साथियों को साथ ले चला गया। ___थोड़े समय पश्चात् महाबल भी मन्दिर से चला गया जब वह राजभवन के मुख्य द्वार पर पहुंचा तो वहां के प्रहरियों ने नमस्कार कर कहा-'निमित्तज्ञ महाराज की जय हो !' प्रहरियों को आशीर्वाद देता हुआ महाबल अपने आवास में न जाकर सीधा महाबल मलयासुन्दरी १४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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