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________________ के अगले भाग की ओर चल दिये। __ रानी का हृदय धड़कने लग गया था। उसने सोचा–बुद्धिमान् सुन्दरसेन ने मुझं छिपाने के लिए पेटी का जो प्रस्ताव रखा था, वह कितना सुन्दर और कारगार सिद्ध हुआ। मलया और महाबल-दोनों मन्दिर के अगले भाग में आए। महाबल ने कहा---'रात्रि का प्रथम प्रहर बीत गया है। पेटी को यहां रखकर जो चार चोर नगर में गए हैं, उनके आने का समय हो रहा है। हमें उनके आगमन से पूर्व अपना काम कर लेना है।' 'चार चोर?' 'हां, मलया!' कहकर पांचों चोरों की बात विस्तार से बताते हुए महाबल ने शिखर में छिपे पड़े चोर की बात भी कही। फिर दोनों स्तंभ के पास गये 'महाबल ने स्तंभ की करामात को समझाते हुए कहा-'प्रिये ! तुझे इस स्तंभ की पोलाल में छिप जाना है। फिर तू अन्दर से जंजीर लगा देना जिससे कि यह द्वार खुले ही नहीं जब तू जंजीर खोलेगी तब ही यह द्वार खुलेगा''अच्छा, एक बार तू स्तंभ में खड़ी रह ।' मलया अन्दर आ गयी। जंजीर को अटका दिया। भीतर खड़े रहने और बैठने के लिए पर्याप्त स्थान था। शरीर के लिए वह किसी भी प्रकार से कष्टप्रद नहीं था। मलया स्तंभ से बाहर आ गयी । महाबल ने कहा-'प्रिये ! तुझे अलंकार पहनकर इसमें खड़े रहना है । यह स्तंभ कल प्रातः राजा के सिपाहियों को मिलेगा। वे इसे स्वयंवर-मंडप में ले जाकर एक वेदिका पर रखेंगे। वहां मेरे संकेत-स्वर के पश्चात् ही भीतर से जंजीर खोलना, पहले मत खोलना।'.. ... 'यह मेरा पुरुष अवतार...' 'ओह ! मैं जब अपने हाथों से तिलक को मिटा दूंगा तब तू मूल रूप में आ जाएगी'--कहकर तिलक को मिटाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। मलया बोली-'क्या इसी वक्त मुझे स्तंभ में प्रवेश करना है ?' 'हां। क्यों?' 'फिर इस स्तंभ को उठाकर पूर्व द्वार पर कौन ले जाएगा?' 'ओह ! तब..." 'पहले हम दोनों इस स्तंभ को पूर्व द्वार पर ले जाकर रखें 'वहां मैं मूल रूप में आकर वस्त्राभूषण पहनकर स्तंभ में समा जाऊंगी।' 'ठीक है।' महाबल ने कहा। फिर वे दोनों स्तंभ के पास आए। मलया ने पूछा-'रानी का क्या होगा?' १४२ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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