________________
'तू पेटी में बैठ जा, मैं पोटली ले आता हूं.''जब वातावरण भयरहित हो जाएगा तब मैं बाहर आने के लिए कहूंगा।' मलया पोटली लाने चली गई।
रानी पेटी में बैठ गई। उसमें कपड़े मात्र थे इसलिए कोई व्यवधान नहीं आया।
थोड़े समय पश्चात् मलया ने रानी को पोटली देते हुए कहा-'अरे ! इतने थोड़े अलंकारों के लिए इतनी चिन्ता ! राजगृह पहुंचकर मैं तेरे पूरे शरीर को ही हीरे और मोती से जड़ दूंगा।'
रानी ने पोटली को संभालते हुए कहा-'अब आप खोज करें. 'रंग में भंग हो गया।' ___ मलया ने कहा-'रंग में भंग होना भी तो उत्तेजना का कारण बनता है... देख ! मैं पेटी का दरवाजा बन्द कर देता हूं, जिससे किसी को कुछ भी संदेह न हो।' मलया ने पेटी का दरवाजा बन्द कर, ताला लगा दिया।
फिर उसने पोटली में से निकाले लक्ष्मीपुंज हार को उत्तरीय के कोने में बांध लिया।
जब वह मन्दिर के अगले भाग की ओर गयी तब उसने देखा कि महाबल दोनों हाथों में दो पोटली लिये आ रहा है। मलया को देखते ही महाबल बोला-'रानी कहां है ?
'मन्दिर के पीछे एक बड़ी पेटी में उसे छिपा रखा है।' 'लक्ष्मीपुंज हार मिला?' 'हां', कहती हुई मलया ने हार दिखाया। 'अच्छा हुआ । अब हमें एक बड़ा काम सम्पन्न करना होगा।' 'इससे पूर्व रानी को यह आभास नहीं होने देना है कि यहां कोई आया है।' 'तू बहुत बुद्धिमान है । चल हम वहीं चलते हैं।'
'पहले मैं जाती हूं, फिर आप आएं।' मलया ने लक्ष्मीपुंज हार महाबल को सौंप दिया और वहां चली गई।
उसने आकर रानी से कहा -'प्रिये ! कोई आया है, पर तू निश्चित रह।' इतने में महाबल ने गंभीर स्वरों में कहा-'कौन खड़ा है ?' 'क्यों? तू कौन है ?' मलया ने ललकारते हुए जवाब दिया। 'मैं महाराजा का एक सैनिक हूं। ऐसे निर्जन स्थान में तू क्यों आया है ?' 'मुझे तो यहां रात बितानी है। मैं अपने साथियों की प्रतीक्षा कर रहा हूं।' 'क्या तूने इस ओर दो स्त्रियों को आते देखा है ?'
'नहीं, मित्र!' ऐसे निर्जन स्थान में स्त्रियां कहां से आएंगी? चल, हम बैठकर बातचीत करें' 'कहती हुई मलया ने महाबल का हाथ पकड़ा और दोनों मन्दिर
महाबल मलयासुन्दरी १४१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org