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तत्काल उसने पेटी को खोला। उसमें वस्त्र थे। उसने सोचा-'यह पेटी किसकी है ? ये वस्त्र कहां से आये?' इस पेटी को यहां कौन ले आया ?'
अधिक सोचे बिना मलया कनकावती के पास आकर बोली-'प्रिये ! यहां कोई नहीं है। ऐसे स्थान पर कौन आए ? क्या तुझे यहां भय लगता है ? पश्चिमरात्रि में तो मेरा रथ यहां आ ही जाएगा।'
'क्या हमें यहीं रात बितानी है ?' रानी का एक हाथ चादर में ही था, क्योंकि उस हाथ में पोटली थी। 'क्या तुझे यह स्थान अच्छा नहीं लगा? रात बीतते समय नहीं लगेगा। मनुष्य जब क्रीडारत होता है तब रात जल्दी बीत जाती है।'
मलया ने रानी के हाथ की ओर संकेत करते हुए कहा---'अरे ! तू साथ में क्या ले आयी ? तू जानती है कि मैं रात में कुछ भी नहीं खाता।'
'इसमें खाद्य पदार्थ नहीं हैं।' 'तो फिर..?' 'मेरे अलंकार हैं।'
'इसकी इतनी सार-संभाल क्यों? पोटली यहां रख दे 'मुक्त विहार में सर्वथा बंधनमुक्त रहना चाहिए।'
रानी ने बिना कुछ कहे, वह जोखिम को पोटली एक ओर रख दी। मलया ने रानी को बाहुपाश में बांध लिया। रानी मलया से लिपट गई।
महाबल ने सोचा-अब अवसर आ गया है। वह सावधानी से नीचे उतरा, मन्दिर में आया और संकेत-स्वर का धीमे से उच्चारण किया। ___मलया और रानी दोनों के कानों में यह शब्द पड़ा। रानी ने कहा--'कोई आ रहा है !' ___'हां, मुझं भी ऐसा प्रतीत हो रहा है', यह कहकर मलया ने चारों ओर देखा । वह संकेत को समझ गई थी।
कनकावती बोली-'राजपुरुष तो..?' 'तू डर मत।' 'आप मुझे कहीं छिपा दें, फिर आप खोज करें ।'
'ठीक है, सावधान रहना अच्छा है।' कहकर मलया ने कनकावती का हाथ पकड़ा और उसे मन्दिर के पिछले भाग की ओर ले गई।
उतावली में रानी लक्ष्मीपुंज हार और अलंकारों की पोटली वहीं भूल गई।
मलया पेटी के पास आकर बोली-'प्रिये ! तू इस पेटी में आराम से छिप सकेगी।'
'परन्तु मेरी जोखिम की पोटली...?' १४० महाबल मलयासुन्दरी
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