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________________ दस-बारह कदम चलते ही दोनों मिल गए। महाबल ने धीरे से कहा'बाहर कैसे निकलना पड़ा?' | 'आपको..?' 'मुझे कल की तैयारी करनी है। इसीलिए इस बाजार में आना पड़ा है। तेरे लिए उत्तम वस्त्र और अनेक वस्तुएं ली हैं। परन्तु तेरा चेहरा कुछ थका हुआ-सा लगता है, क्यों? ___ 'आपने मेरे पर गुरुतर दायित्व दिया था। परन्तु वेश्या के घर में क्षणभर के लिए भी कैसे रहा जा सकता है ? 'कर्मों की गति के आगे सबको लाचार होना पड़ता है। वहां रानी थी?' 'हां, आज मध्याह्न के पश्चात् उसको मैं भट्टारिका देवी के मंदिर में लाने वाली हूं।' 'क्यों?' महाबल ने पूछा। 'जो वस्तु उससे प्राप्त करनी है, वह उसी के पास है। और...' 'और क्या?' 'वह आ रही हैं मेरे पर आसक्त होकर...' कहकर मलया हंस पड़ी। 'अरे ! तेरे पर कौन अभागी मुग्ध नहीं होगी ? ले, तुझे एक शुभ संवाद सुनाता हूं कि तेरे माता-पिता बच गए. हैं ।' यह कहते हुए महाबल ने निमित्तज्ञ के रूप में अपने अभिनय की पूरी जानकारी मलया को दी। मलया ने भी मगधा के भवन में स्वयं को कौन-कौन से अभिनय करने पड़े थे, उसकी पूरी जानकारी महाबल को देते हुए कहा-'देवी कनकावती मेरे साथ राजगृह चलने के लिए तैयार हो गई है।' महाबल बोला-'शाबास, सुन्दरसेन ! अब यह सावधानी बरतनी है कि तुझे सन्ध्या के समय भट्टारिका देवी के मंदिर में पहुंच जाना है।"उससे पहले नहीं क्योंकि मेरा कार्य उस समय तक संपन्न हो जाएगा।' 'ऐसा कौन-सा कार्य है ?' 'यह तो जब तू वहां आएगी तब स्वयं ज्ञात हो जाएगा। अब हम वियुक्त हों, आगे के मिलन की चाह लिये ।' 'प्रिय ! एक बात है। मुझे आज एक बंद रथ की आवश्यकता है।' _ 'सुन्दरसेन ! मध्याह्न के पश्चात् एक रथ मगधा के भवन पर आ जाएगा, मैं इसकी व्यवस्था कर दूंगा । और कुछ ?' 'कुछ स्वर्णमुद्राएं भी आवश्यक हैं।' 'मेरे पास बहुत हैं। तेरे पिता ने मुझे उपहार में दी हैं ।' यह कहते हुए महाबल ने अपने थैले में से सौ स्वर्ण मुद्राएं मलया को दी। मलया ने उन्हें अपने उत्तरीय के छोर पर बांध लिया। महाबल मलयासुन्दरी १३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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