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के लिए रहना चाहेंगी?'
'हां, इच्छा तो ऐसी ही है।
'अच्छा, मैं आपको पत्नी के रूप में नहीं, प्रेयसी के रूप में स्वीकार कर लूंगा।'
'आपका प्रस्ताव मोहक है। परन्तु मेरा त्याग तो नहीं कर देंगे?' 'ऐसा संशय क्यों उठा ?'... 'अनेक पुरुष स्वार्थ सधने के बाद प्रियतमा का त्याग कर देते हैं।'
'मैं वैसा पुरुष नहीं हूं। यदि आप मेरे मन में नहीं बसी होती तो मैं यह प्रस्ताव नहीं रखता। हमें यहां से राजगृह की ओर चले जाना पड़ेगा। मैं वहाँ आपको अपने एकान्त भवन में रखूगा। मेरे परिवारवालों को कुछ भी कल्पना नहीं हो पाएगी।'
रानी विचार करने लगी--यहां से निकल जाने का इससे अच्छा योग नहीं मिलेगा। यहां रहने से राजा के सैनिकों के हाथों पकड़े जाने का भय बना ही रहेगा। 'सुन्दरसेन अपनी इच्छा से मुझे यहां से ले जाने के लिए तैयार है। मुझे इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
मलया ने पूछा---'देवी ! क्या सोच रही हैं ?' 'आपका प्रस्ताव मुझे स्वीकार है।'
तत्काल मलया उठी। रानी के दोनों हाथ पकड़कर वह बोली-'प्रिये ! आज मेरा मन बहुत प्रसन्न है। मुझे जैसी नारी की आवश्यकता थी वह आज मुझे प्राप्त हो गयी। प्रिये ! अब मुझे पूर्व तैयारी के लिए यहां से जाना पड़ेगा। तुम तैयार रहना। रथ में हमें यहां से चलना है।'
__ मलया ने रानी का आश्लेष लिया। उसे भुजपाश में जकडकर बोला-~'देवी! अब मुझे आज्ञा दो।'
रानी बोली-“इतनी जल्दी क्या है ? एकान्त स्थान । 'नहीं, प्रिये ! विलम्ब होगा। मुझे वापस आना ही है।' मलया भवन के बाहर निकल गयी। मगधा ने रानी कनकावती से सारी बात जान ली। सुन्दरी अनमनी हो गयी।
मलयासुन्दरी मगधा के भवन से निकलकर बाजार में से जा रही थी, एक दूकान पर उसकी दृष्टि पड़ी। वह चौंकी। महाबल कुछ खरीद रहा था । मलयासुन्दरी उसकी तरफ गयी।
मलया को अपनी ओर आते देख महाबल दुकानदार से सारी चीजें बांधने के लिए कहते हुए बोला-'मैं अभी अपने मित्र से मिलकर आता हूं।' यह कहकर महाबल मलया की ओर चल पड़ा।
१३४ महाबल मलयासुन्दरी
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