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________________ २६. आशा का अनुबंध रानी कनकावती और मगधा-दोनों मलया के प्रति मुग्ध हो गए थे। मगधा ने सोचा-ऐसा सुन्दर, स्वस्थ, सुकुमार नवयुवक आज तक मैंने नहीं देखा। कितनी मधुर है इसकी वाणी! कितनी मादकता है इसकी आंखों में ! कितना उभार है इसके यौवन का ! यदि इसके साथ अपने यौवन का आनंद लूं तो जीवन निहाल हो जाए। रानी कनकावती ने भी इसी भाषा में सोचा था। दासी सुन्दरी भी इसी आशा को मन में संजोए समय की प्रतीक्षा कर रही थी। ___ इस प्रकार तीनों स्त्रियों का मन चंचल और विकारग्रस्त हो गया था। मगधा सुन्दरसेन से बातचीत करने लगी। उसे यह प्रतीति हुई कि युवक कामशास्त्र का ज्ञाता है। उसने पूछा-'श्रीमन् ! आपने इतनी छोटी वय में कामशास्त्र का इतना गहरा ज्ञान कैसे प्राप्त कर लिया ?' __ मलया बोली-'देवी ! मेरे पिता ने मुझे राजगृह की प्रसिद्ध वेश्या के घर दो वर्ष तक रखा था। वे मानते थे कि गणिका के यहां रहने से बुद्धि, चातुरी और रसशास्त्र का तलस्पर्शी ज्ञान किया जा सकता है। मैंने सब कुछ वहीं सीखा 'आपका विवाह ?' रानी कनकावती ने पूछा। 'अभी तक नहीं। एक-दो वर्ष बाद विवाह होगा।' मलया ने कहा। 'धन्य होगी वह नारी, जिसे आप पतिरूप में प्राप्त होंगे।' मगधा ने कहा। वह आगे कुछ कहने वाली थी, इतने में ही मलया ने उठते हुए कहा-'अब मुझे मेरे परिचारिकों की तलाश करने के लिए पान्थशाला में जाना पड़ेगा। मेरा सारा सामान उन्हीं के पास है। सारे आभूषण और स्वर्णमुद्राएं उन्हीं को देकर इधर चला आया था।' ____ मगधा बोली-'यह भी आपका ही भवन है। स्वर्णमुद्राओं की यहां कोई कमी नहीं है । मैं अपने आदमियों को भेजकर उनकी खोज करवा लेती हूं। आप १३२ महाबल मलयालरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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