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है। मैं तुझ पर मुग्ध हूं। अभी ये पांच मुद्राएं ले जा। परिचारिका के आने पर मैं तुझे अलंकरणों से शृंगारित करूंगा।'
सुन्दरी मलया को नमस्कार कर चली गयी।
मलया स्नान आदि से निवृत्त हुई और सुन्दरी द्वारा उपहृत वस्त्र पहनकर मगधा से मिलने की उत्सुकता लिये बैठ गयी। __ इतने में ही सुन्दरी आयी और सुन्दरसेन के वेश में मलया को चलने के लिए कहा । मलया उसके पीछे-पीछे चल पड़ी।
वे दोनों मगधा के कक्ष में प्रविष्ट हुए। सुन्दर और बलिष्ठ युवक को देखकर मगधा उठी और प्रसन्नमुद्रा में बोली-'पधारो, श्रीमन् ! आप इस आसन पर विराजें।' ___ मगधा की ओर देखते हुए सुन्दरसेन एक आसन पर बैठ गया। औपचारिक वार्तालाप प्रारंभ हुआ। एक-दूसरे का कुशलक्षेम पूछा। मगधा नवयुवक के रूप
और सौन्दर्य पर मुग्ध हो गयी। वह उसकी वाणी की मधुरता और चतुराई से अभिभूत हो गई।
केलिगृह के परदे के पीछे खड़ी कनकावती एकटक इस नवयुवक को देख रही थी। उसके मन में अनेक कल्पनाएं उठीं। उसको लगा कि यदि इस नवयुवक का सहवास मिले तो नारी-जीवन धन्य हो जाए""रूप और अतृप्ति की आग में झुलसते यौवन को रस-माधुर्य के छींटे प्राप्त हों...
उसने यह निश्चय कर लिया था कि यह नवयुवक गुप्तचर नहीं है, किन्तु परदेशी श्रेष्ठीपुत्र है। .
रानी सुन्दरसेन को देखकर कामविह्वल हो चुकी थी। उसको अपनी परिस्थिति का भी भान नहीं रहा कि वह एक राजा की रानी है और घर से भागकर यहां शरण ली है। वह अपनी भावना को रोकने में असमर्थ थी। उसके मन में उतावलापन उभर रहा था। __नारी के मन में जब पिपासा जागती है तब वह अपनी परिस्थितियों को भूल जाती है।
मगधा ने सुन्दरसेन के हाथ दुग्धपान करने का पात्र दिया और इतने में ही परदा सरका और आषाढ़ की बिजली की चमक की तरह रानी कनकावती इस नवयुबक को देखती हुई बाहर आयी।
मलया दुग्धपात्र हाथ में थामे हुए खड़ी हुई और प्रश्नसूचक दृष्टि से मगधा की ओर देखा। मगधा ने तत्काल कहा-'श्रीमन् ! यह मेरी प्रिय सखी वल्लभा है।'
मलया ने रानी की ओर देखते हुए कहा-'मैं वल्लभा के दर्शन कर धन्य हुआ।' १३० महाबल मलयासुन्दरी
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