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________________ दो।' महाप्रतिहार ने तत्काल आज्ञा का पालन किया । ज्योतिषशास्त्र की चर्चा करते हुए महाबल ने महाराजा से कहा---'अब कल मैं आठ प्रहर तक एकान्त में साधना करना चाहूंगा, जिससे कि राजकुमारी का आगमन कुशलक्षेम से हो जाए। क्रूर ग्रहों के कारण उसे भयंकर विपत्तियां झेलनी पड़ी हैं। अब ग्रहों की शांति के लिए मुझे कुछ उपक्रम करने होंगे, इसलिए मुझे आराधना में बैठना होगा।' . 'मेरी पुत्री के लिए आप जो कुछ करना चाहें, करें। आप पर मुझे पूरा भरोसा है।' महाराजा ने कहा। इस प्रकार राजा की स्वीकृति हो जाने पर सभी उठे और अपने-अपने गन्तव्य की ओर चल पड़े। महाबल अतिथि भवन में आया और अपने कक्ष में शय्या पर सो गया। रात बीत गई। सुन्दरसेन के वेश में आयी हुई मलया प्रातःकाल जल्दी उठी । उसने सबसे पहले नवकार मंत्र की आराधना की। फिर वह वातायन के पास गई। उसने देखा कि जो-जो युवक रात्रि बिताने के लिए मगधा के यहां आए थे, वे अपनेअपने निवास की ओर जाने के लिए बाहर निकल रहे हैं। मलया को एक प्रश्न कचोट रहा था। उसने सोचा-'मेरे पास मात्र दस मुद्राएं हैं । वस्त्रों का जोड़ा भी नहीं है । अब कैसे क्या होगा?' परन्तु जब भाग्य सहारा देता है तब सब कुछ अनुकूल बन जाता है। मलया ने सोचा, मैं मगधा के घर में तो आ गयी, परन्तु रानी कनकावती से कैसे मिलना हो? उसके साथ परिचय कैसे किया जाए और उससे लक्ष्मीपुंज हार कैसे लिया जाए? यह कार्य आज संध्या से पूर्व संपन्न कर देना है, क्योंकि संध्या के बाद भट्टारिका देवी के मंदिर में लौट जाना है। कैसे करूं? वह इन विचारों के सागर में निमग्न थी, इतने में ही द्वार पर किसी ने दस्तक दी। मलया ने द्वार खोला। सुन्दरी ने हंसते हुए कहा-'श्रीमान् की जय हो । रात्रिवास तो सुखपूर्वक बीता ?' 'हां, प्रिये ! प्रवास का सारा श्रम दूर हो गया।''अदर ।' कहकर सुन्दरसेन अंदर मुड़ा। - मलया ने कहा- 'सुन्दरी! मेरे परिचारक अभी वस्त्र लेकर नहीं आए हैं। मुझे देवी से शीघ्र मिलना है। विलम्ब होगा, ऐसा लगता है।' सन्दरी बोली-'आप इस छोटी-सी बात के लिए क्यों चिन्तित हो रहे हैं? यदि आप श्रीमान् को आपत्ति न हो तो मैं उत्तम वस्त्रों की व्यवस्था कर देती हैं।' मलया पांच स्वर्ण मुद्राएं देती हुई बोली-‘सुन्दरी ! वास्तव में ही तू सुन्दरी महाबल मलयासुन्दरी १२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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