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________________ “श्रीमन् ! महाप्रतिहार पधार रहे हैं।' महाबल तत्काल शय्या से उठा, खंड के बाहर आया.''इतने में ही महाप्रतिहारी ने नमस्कार करते हुए कहा----'महान् निमित्तज्ञ ! आपकी जय हो। महाराजा ने आपको याद किया है। "पूरा राजपरिवार और मंत्रीमंडल आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।' 'क्यों ? क्या कोई घटना घट गयी ?' 'हा, आप वहां पधारें। आपका मन प्रसन्न हो जाएगा।' महाबल ने वस्त्र धारण किए और तत्काल राजभवन की ओर प्रस्थान कर दिया। राजभवन में सब एकत्रित थे। महाबल वहां पहुंचा। राजा ने आसनदान दिया। वह एक सुखासन पा बैठ गया । महाराजा ने कहा---'श्रीमन् ! आपकी भविष्यवाणी सिद्ध हो गई है। राजकुमारी मलयासुन्दरी की राजमुद्रिका अभीअभी प्राप्त हुई है।' निमितज्ञ ने मुसकराते हुए कहा-'महाराजश्री ! मुझे विश्वास था कि प्रातः काल तक यह मुद्रिका मिल जाएगी क्योंकि निमित्तज्ञान एक प्रकाश है।' महाराजा ने कहा-'किन्तु मुद्रि का बहुत ही विचित्र ढंग से मिली है। हमारे अतिबलवान् राजहाथी के मल में से यह मिली है, यह सभी के आश्चर्य का विषय है।' 'ठीक है। 'अब और भी निश्चय हो गया कि राजकुमारी जीवित है और वह स्वयंवर में प्रकट हो जाएगी। आप अब संशय न करें।' महाबल ने कहा। महादेवी बोलीं--'श्रीमन् ! हाथी के मल से राजमुद्रिका की प्राप्ति बहुत ही आश्चर्यकारी घटना है। आप इसका समाधान दें।' 'महादेवी ! आपकी कुलदेवी की शक्ति अपार है. 'कुछ भी हो, मुद्रिका प्राप्त हो गयी, चाहे वह कैसे भी क्यों न मिले।' उसी समय एक परिचारक दो थाल लेकर आया। दोनों ढंके हुए थे। महामंत्री ने निमित्तज्ञ की ओर दृष्टिपात करते हुए कहा-'अब आप कुछ भी आनाकानी मत करना। यह पत्रं-पुष्पं आप स्वीकार करें और महाराजश्री की भावना का सत्कार करें।' ___ एक थाल में स्वर्ण-मुद्राएं और रत्नजटित हार था और दूसरे थाल में बहुमूल्य वस्त्र थे। महाबल को स्वर्ण-मुद्राओं की आवश्यकता तो थी ही। क्योंकि कल उसे अनेक चीजें खरीदनी थीं। वह बोला-'कृपावतार ! मैं आपकी भावना को शिरोधार्य करता हूं।' तब मंत्रीश्वर ने महाप्रतिहार से कहा---'ये दोनों थाल अतिथिगृह में पहुंचा १२८ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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