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२५. अपरिचित
चंद्रावती नगरी की प्रसिद्ध वेश्या मगधा के भवन में मलया निश्चिन्त सो रही थी। अतिश्रम के कारण वह तत्काल निद्राधीन हो गई। रात्रि के दूसरे प्रहर में अचानक उसकी नींद खुली और दासियों की फुसफुसाहट उसके कानों में पड़ी। वह स्पष्ट रूप में कुछ भी जान न सकी। पर इतना उसे ज्ञात हो गया था कि कल रात में कोई अपरिचित रूपवती नारी यहां आयी थी और वह देवी मगधा के खंड में ही ठहरी है। कोई भी दास-दासी उस खंड में प्रवेश नहीं कर सकते। केवल सुन्दरी ही वहां आ-जा सकती है। कौन होगी वह नारी ?
यह सारी भावना उस चर्चा में थी और मलया को यह निश्चित हो गया था कि रानी कनकावती यहां आ पहुंची है।
उसने अपने मिष्ट व्यवहार से सुन्दरी को वश में कर लिया था, इसलिए निश्चिन्त होकर सो गई।
ठीक इसी समय महाबल राज्य के अतिथिगृह में शय्या पर सोए-सोए अनेक विकल्पों के आवर्त में घूम रहा था। उसके मन में मलया की चिन्ता उभरती थी। उसने सोचा--मगधा के यहां से कनकावती यदि अन्यत्र चली गयी होगी तो? ओह यदि ऐसा हो गया तो लक्ष्मीपुंज हार नहीं मिल पाएगा और मेरी माता अवश्य ही प्राणों का विसर्जन कर देगी। _दूसरा विचार उसके मन में यह भी उभर रहा था कि यदि राजकुमारी की नामांकित मुद्रिका प्राप्त हो जाती है तब तो दांव सफल हो जाता है, अन्यथा...
उसने सोचा-परसों स्वयंवर की पवित्र तिथि है। कल मुझे एक गुप्त कार्य में व्यस्त रहना है 'परसों प्रातःकाल होने से पूर्व मुझे वह स्तंभ स्वयं वहां रखना है। "उस स्तंभ को तैयार करने के लिए मुझे कुछ साधन एकत्रित करने हैं. और अत्यन्त गुप्तरूप से कल मुझे सारे कार्य व्यवस्थित करने हैं।
इस प्रकार एक-एक कर अनेक विचार उसके मन में प्रश्नों की परंपरा खड़ी कर रहे थे। . इतने में ही वहां नियुक्त राज्यकर्मचारी दौड़ा-दौड़ा आया और बोला
महाबल मलयासुन्दरी १२७
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