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________________ 'हां, महाशय ! उसकी मुख्य परिचारिका आपको भीतर ले जाएगी''आप आगे चलें।' नवकार मंत्र का स्मरण करती हुई मलया भवन में आगे चली। कुछ ही क्षणों के पश्चात् उसे मगधा की मुख्य परिचारिका सुन्दरी मिली। उसने मलया को देखा। उसे एक सजे-सजाए खंड में बिठाकर बोली-'श्रीमन् ! आप कोई परदेशी लग रहे हैं । आपका नाम क्या है ?' 'मेरा नाम है सुन्दरसेन, तुम्हारा नाम क्या है ?' 'मेरा नाम है सुन्दरी।' सुन्दरी ने लज्जा भरे स्वरों में कहा। 'ओह ! कितना सुन्दर संयोग ! मुझे सर्वप्रथम सुन्दरी के दर्शन हुए। महादेवी मगधा कहां है?' 'श्रीमन् ! वह आज कुछ अस्वस्थ हैं। आप रात भर यहीं विश्राम करें। प्रातः वह आपसे मिलेंगी।' सुन्दरी ने सुन्दरसेन के लिए एक सज्जित खंड खोल दिया। सुन्दरी सुन्दरसेन पर मुग्ध हो गई । उसके यौवन की मियां नाच उठीं। सुन्दरसेन ने उसकी भावना को समझ लिया। उसके साथ हंसी-मजाक करता हुआ अपने लिए निर्धारित सुन्दर-सज्जित खंड में रात बिताने चला गया। ___ सुन्दरी मगधा के पास जाकर बोली-'महादेवी ! आज एक ऐसा युवक अपने भवन में आया है, जो कामदेव से भी अधिक सुन्दर है। वह कोई श्रेष्ठोपुत्र है।' उसने सारी बात कही। रानी कनकावती उस समय मगधा के पास ही बैठी थी। उसका मन युवक की सौन्दर्यगाथा को सुनकर विह्वल हो गया था। उसने भी बात में बहुत रस लिया। मगधा ने कहा-'सुन्दरी ! चल, मैं उसे देखने तेरे साथ चलती हैं।' 'अभी तो वे सो गए हैं।' 'तो कल प्रातःकाल...' रानी कनकावती ने बीच में कहा-'सखी ! उसको यहीं बुला लो।' 'यहां ?' मगधा ने कनकावती की ओर देखा। 'हां, मैं उसे गुप्तरूप से देखना चाहती हूं."राजा का कोई गुप्तचर तो नहीं है ?' 'ठीक है, हमें पग-पग पर सावधान रहना है'-मगधा ने कहा । सुन्दरी ने कहा--'देवी ! मैं प्रातः उसे ले आऊंगी।' मगधा ने स्वीकृति दे दी। १२६ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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