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________________ आपके कथन में तनिक भी सन्देह नहीं है । मुझे तो आपके महान् ज्ञान पर श्रद्धा है, आस्था है।' 'महामंत्रीश्वर ! मैं अवश्य रुकूगा और मुझे साधना के लिए कहीं जानाआना होगा तो महाराजश्री की आज्ञा लेकर ही जाऊंगा किन्तु स्वयंवर के दिन मैं अवश्य ही उपस्थित रहूंगा।' महामंत्री ने प्रसन्न स्वरों में कहा-'महात्मन् ! आप पर मुझे पूर्ण श्रद्धा है ..'अब आपको हमारी भावना को स्वीकार करना होगा...' कहते हुए मंत्रीश्वर ने अपने कंठों से मणिमाला निकाली। तब महाराजा ने भी कहा—'महाप्रतिहार ! जाओ, स्वर्णमुद्राओं के पांच थाल ले आओ' "उत्तम वस्त्र भी ले आओ।' तत्काल निमित्तज्ञ बलदेव खड़ा हुआ और बोला--'महाराज ! आप अन्यथा न मानें। मैं अपनी विद्या के विनिमय में कुछ भी नहीं ले सकता''किन्तु राजकुमारी का स्वयंवर संपन्न होते ही मैं स्वयं मांग लूंगा।' निमित्तज्ञ की इस नि:स्पृहता पर सब मुग्ध हो गए। निमित्तज्ञ सुन्दर था, नवयुवक था। उसकी आंखों में तेजस्विता थी। सभी उसके निमित्त ज्ञान पर आश्चर्य कर रहे थे। संभव है, यह मनुष्य नहीं, देव हो! ____ महाराज ने पूछा--'श्रीमन् ! एक प्रश्न मन में उभर रहा है । आप उसे अनुचित न समझें । मैं यह जानना चाहता हूं कि मेरी पुत्री मलयासुन्दरी का पति कौन होगा? आप कृपा कर बताएं।' तत्काल महाबल ने आंखें बन्द कर ध्यानस्थ होने की मुद्रा बना ली। कुछ क्षणों के बाद ध्यान संपन्न कर बोला-'वाह-वाह ! यह तो सोने में सुगन्ध हो गई। किन्तु महाराज, यदि मैं नाम बताऊंगा तो आए हुए राजकुमार असंतुष्ट हो जाएंगे। परन्तु मैं एक पत्र में नाम लिख देता हूं। उसको सीलबन्द करके महामंत्री को सौंप देता हूं। यह पत्र आप परसों स्वयंवर-मंडप में खोलें. “राजकुमारी जिस पवित्र राजकुमार के गले में वरमाला पहनाएगी, उसी का नाम पत्र में अंकित मिलेगा।' महाबल ने एक पत्र में नाम लिखा । उसे सीलबंद कर मंत्रीश्वर को दे दिया। मध्याह्न का समय व्यतीत हो गया। महाबल ने अपनी सेवा में नियुक्त राज्य-कर्मचारी से कहा- 'एक दूत बुला भेजो। मुझे कुछ संदेश भेजना है।' 'कहां, श्रीमन् ?' 'पृथ्वीस्थानपुर में।' 'अभी उसे हाजिर करता हूं'--कहकर राज्यकर्मचारी बाहर गया। महाबल ने अपनी माता के नाम एक पत्र लिखकर तैयार रखा। एक १२४ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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