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२४. कर्म की गति
चिता बुझ गई। महाराजा वीरधवल और महारानी चंपकमाला राजप्रासाद की ओर जा रहे हैं। इसकी प्रसन्नता से सारी प्रजा जय-जयकार की ध्वनि से आकाश को गुंजा रही है। ___ सभी राजप्रासाद पर पहुंच गए। जनता साथ थी। राजप्रासाद पर पहुंचकर महाराजा ने आचार्य बलदेव से कहा---'निमितज्ञ ! आपने मुझे अपने प्रायश्चित्त से क्यों रोका ? आपने ऐसा आश्वासन दिया है कि वह कभी संभव नहीं माना जा सकता । जो मर चुकी, वह जीवित कैसे रह सकती है ? आप सही बताएं।' __ महामंत्री ने पूछा-'ज्ञानी पुरुष ! आप हमें बताएं कि राजकन्या अभी कहां
'मंत्रीश्वर ! राजकन्या यहीं कहीं है।' 'हम हमारी प्रिय राजकुमारी से कब मिल पाएंगे?'
गणित करने का ढोंग करते हुए महाबल बलदेव ने कहा-'परसों राजकुमारी के स्वयंवर का शुभ दिन है। स्वयंवर-मंडप में हजारों राजकुमार एकत्रित होंगे। उस समय राजकुमारी भव्य वस्त्रालंकारों से सज्जित होकर आप सबको दिखलाई देगी।'
'इससे पूर्व क्या राजकन्या नहीं आ सकती ?' 'नहीं।'
'यदि परसों स्वयंवर-मंडप में राजकन्या न आए तो अत्यन्त भीषण स्थिति उत्पन्न हो सकती है।' महामंत्री ने कहा।
‘मंत्रीश्वर ! निमित्त-ज्ञान कभी अन्यथा नहीं हो सकता ''आप आनंदपूर्वक स्वयंवर की तैयारी करें। 'बाहर से समागत राजकुमारों को लौटने न दें "उनका आतिथ्य करें "राजकन्या आयेगी, इसमें तनिक भी संशय नहीं है।' महाबल ने कहा।
महादेवी ने कहा-'महात्मन् ! आपका कथन यथार्थ हो सकता है, परन्तु आप अपनी बात के लिए कोई प्रमाण प्रस्तुत करें।' १२२ महाबल मलयासुन्दरी
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